वर्तमान समय के परिपेक्ष्य में आज हर तरफ बुराइयाँ हैं। सब जगह बस वही नज़र आती है। शायद , इसीलिए हमें अब बुराई ही अच्छी लगने लगी है।
एक-दूसरे से आगे निकलने की कभी ना खत्म होने वाली अंधी दौड़ , बस आँख पर पट्टी बांधे दौड़ रहें हैं। अपनों की ही भावनाएं आहत कर रहें हैं। सवेंदनाये शून्य होती जा रही हैं। और लोग इसे आज का culture बता रहे हैं।
जब आँखों पर पट्टी बंधी होगी तब अच्छी और बुराई में अंतर नहीं नज़र आयेगा । आखें होते हुए भी blindness है।
अच्छे भी हम , बुरे भी हम.... सफ़ेद भी हम और काले भी हम ही हैं .... बस समय -समय की बात है। भगवान् ने सिर्फ इंसान बनाया , उसके कर्मों ने ही उसे अच्छा- बुरा बना दिया।
"दस" सिर अगर बुराई के हैं तो क्या हुआ ? अच्छाई का "एक" ही सिर काफी है... बुराई पर विजय पाने के लिए... सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति वही है जो जीवन के कठिन पलों में भी अच्छाई का साथ नहीं छोड़ता है।
आखों पर बंधी पट्टी को हटाना ही होगा। पट्टी को हटाते हुए ही जीवन के सभी रंग इन्द्रधनुषी दिखने लगेंगें।
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