7/30/2009

"जे.आर. डी. टाटा - (29 July 1904 - 29 Nov. 1993)"



श्री जे.आर. डी. टाटा कहते हैं :

"अगर मुझमे कोई योग्यता है तो वह है लोगों को साथ लेकर चलना, उनके तौर-तरीकों और स्वभावों को समझते हुए .... कई बार आपको ख़ुद को दबाना पड़ता है, यह पीड़ादायी होता है, मगर ज़रूरी भी होता है... एक लीडर बनने के लिए आपको अपने लोगों का नेतृत्व स्नेह के साथ करना पड़ता है। "

7/27/2009

"कारगिल विजय" के दस वर्ष ....



कल "कारगिल विजय" को दस वर्ष बीत गए। हम, आप और सभी भारतवासियों ने अपनी भीगी पलकों के साथ सभी कारगिल के शहीदों को शत-शत नमन करते हुए श्रधांजलि अर्पित की । धन्य है हमारी भारत भूमि और धन्य हैं वह माताएँ जिन्होंने ऐसे वीरों को जन्म दिया।

लेकिन, शायद आज दस वर्ष बीत जाने के बाद भी हमने "कारगिल युद्घ " से कोई सबक नहीं लिया है। वरना "26/11" जैसी घटनाएँ कभी नहीं होती।

हमारे पड़ोसी मित्र, अगर मिलाना है तो दिल से दिल मिला । यूँ बेमन से हाथ मिलाना ठीक नहीं। वे मित्रताएं , जहाँ दिल नहीं मिलते हैं , बड़ी ऊँची आवाज से टूटती हैं। "कारगिल" और "26/11" की घटनाएं इसका ज्वलंत उदाहरणहै। इतनी "सहनशीलता" और "उदारता" आखिर कब तक ?

7/26/2009

"प्रत्येक मनुष्य योग्य बने - इच्छा करने की कोई ज़रूरत नहीं"

स्वामी राम तीर्थ कहते हैं - जो ईंट दीवार के योग्य होगी वह चाहे जहाँ पड़ी हो, एक ना एक दिन अवश्य दीवार में लगाने के लिए उठा ली जायेगी।

इस प्रकार , प्रत्येक मनुष्य योग्य बने - इच्छा करने की कोई ज़रूरत नहीं । यदि पात्र होगा तो यह दैवी नियम है कि उसे सब चीजे अवश्य मिल जायेगीं ।

यदि कोई दीपक जल रहा है तो जलता रहे , पतंगों को बुलाने की आवश्यकता नहीं। पतंगें स्वयं ही दीपक को आ घेरेंगें।

7/20/2009

"जय बम भोले ... जय बम भोले ... जय बम भोले"



आज , आपको एक बार फिर हम "हरिद्वार" ले चलते हैं। आपसे अनुरोध है कि कुछ देर के लिए आप भी मेरे साथ इस यात्रा पर चलें, आपको एक सुखद अनुभूति होगी।

जैसा कि आप जानते हैं कि इस समय सावन के पवित्र सोमवार चल रहे हैं। इस मौके पर "हरिद्वार" से लाखों की संख्या में लोग गंगा से पवित्र जल ले कर आते हैं। कई सौ किलोमीटर की लम्बी पैदल यात्रा करते हुए सोमवार को अपने-अपने शहर के मंदिरों में उस जल से भगवान् शिव का अभिषेक करते हैं।

जी हाँ, आपने बिल्कुल सही पहचाना , मैं आपसे भोले बाबा के भक्तों की बात कर रहा हूँ, जिन्हें हम "काँवरिया" कहते हैं। अपने कन्धों पर गंगा का जल भर कर लाते हैं। "बम भोले" की गूँज से इन दिनों सारे शहरों का वातावरण गुंजायमान रहता है।

बहुत से लोग तो नगें पैर ही चलते रहते हैं। पैरों में छाले पड़ जाते हैं। परन्तु , भक्त अपने कन्धों से "कांवर " भी नहीं उतारते हैं। भोले बाबा के नाम की शक्ति जो उनके साथ चलती रहती है।"आस्था" और "विश्वास" का अद्धभुत संगम हैं ये बाबा के भक्तगण।

भगवा वस्त्र पहने हुए, कंधे पर गंगाजल से भरी हुई "कांवर" और भोले बाबा की गूँज के साथ हरिद्वार से चल कर एक शहर से दूसरे शहर होते हुए भक्तों के बेड़े ह्रदय को अत्यन्त भावुक कर देते हैं। रास्ते में आने वाले शहर की सामजिक और धार्मिक संस्थाएं उनके भोजन की सारी व्यवस्थाएं देखतीं हैं।

भोले बाबा के प्रति भक्तों की भक्ति और समर्पण की भावना को हमारा शत-शत प्रणाम है।

"जय बम भोले"