12/26/2010

वजूद की तलाश है , समन्दरों की प्यास है ।
ज़िन्दगी पर शक नहीं, सांसों पर हक़ नहीं ।
सबूत मेरे पास है , वजूद की तलाश है ।
आधे-आधे बंटे हुये थे , दिल के बोझ से दबे हुये थे ।
रात को बाँध लो सरक ना जाये या सुबह से कह दो आज ना आये ।
जाने कैसा मोड़ है ये , ना खुश है ना दिल उदास है ।
वजूद की तलाश है , समन्दरों की प्यास है
टूट कर बिखर गये थे, अपनी नज़र से उतर गये थे ।
तिनका-तिनका तूने समेटा , जिस्म बनाके मुझको लपेटा ।
बिछुड़ कर भी तू जुदा नहीं है कहीं तो तुझ में ख़ास है ।
वजूद की तलाश है , समन्दरों की प्यास है
ज़िन्दगी पर शक नहीं, सांसों पर हक़ नहीं
सबूत मेरे पास है , वजूद की तलाश है
ज़िन्दगी का इम्तिहान हमने कुछ दिया इस तरह ,
वह हर रोज हमें एक नया सवाल देती रही

12/25/2010

इस सपनों की नगरी से , कोई ना कोई नाता है ज़रूर ।
वर्ना अपने घर से , कौन आता है इतनी दूर।

12/23/2010

एक नयी शुरुआत ...

एक नयी शुरुआत ...
मन में कुछ कर गुजरने की चाहत...
आजकल , ज़िन्दगी कुछ बदली-बदली सी नज़र आती है...
(सपनों की नगरी से....)

12/20/2010

"श्री सिद्धि विनायक" मंदिर - मुंबई



आज मुंबई की यात्रा शुरू हई "श्री सिद्धि विनायक" जी के मंदिर से....
मंदिर में श्री गणेश जी के दिव्य और अलोकिक दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
ह्रदय
में एक सुखद आनंद की अनुभूति हुयी दर्शन के बाद.... हजारों भक्तगण निरंतर आ रहे थे... सभी कुछ न कुछ प्रभु से मांग रहे थे... पूजा के बाद मंदिर परिसर में भी थोड़ी देर सभी बैठते थे ...
दर्शनों के बाद सभी भक्तों के चेहरों पर एक संतोष का भाव अनुभव किया मैंने... मानों उनके मन की मुराद पूरी हो गयी हो ...
सच , भगवान् के दर्शन मात्र से ही ह्रदय में एक नयी ऊर्जा का संचार हो जाता है ... बिना मागें ही सब कुछ मिल जाता है ... जीवन सफल हो जाता है ...
गं गणपते नमः !
गं गणपते नमः !
गं गणपते नमः !
गं गणपते नमः !
गं गणपते नमः !

12/17/2010

जरा सोचों तो , "पानी" से जुदा होकर "मछलियाँ" क्यों मर जातीं हैं ? क्योंकि उन्हें मालूम ही नहीं होता कि "नजदीकियां" पहले "आदत" , फिर "ज़रूरत" और फिर "ज़िन्दगी" बन जाती है ।



12/12/2010

Golden Words....

Speak love of yesterday for the instruments it gave you to carve the present. Embrace today with the arms strengthened by persistence and tomorrow will hug you back. ~ Dodinsky

12/10/2010

"कारगिल, 26/11 और अब 13/12 ....."

कारगिल, 26/11 और अब 13/12 ..... क्या यह सिर्फ "बरसियाँ" हैं..."शहीदों" को याद करने के लिए ?

12/04/2010

"बन जाऊं मैं बरगद और ,
बैठकर छावं में जिसकी ,
कर सको दूर तुम अपनी थकान । "

घुमावदार रास्ते और संकरे मोड़ों के गुज़र जाने के बाद ,
दिखाई देने लगती है बड़ी-बड़ी और खुली राहें ...