9/26/2010

""कैक्टस" से अहसास हो गये हैं ..."

आपके लेख के दूसरे भाग , जिसमे आपने वर्तमान समय में "रिश्तों" पर लिखा है । अब इस सन्दर्भ में आपसे कुछ कहना चाहूँगा।
आपकी यह बात भी आज के सन्दर्भ में बिलकुल सही है , सच बहुत कुछ बदल गया है । हमारे अहसास बदल गये है । हमारा "आज" "व्यवसायिक हो गया है । किसी की मुस्कराहट भी अब तो "प्लास्टिक" जैसी लगती है ।
कागज़ के फूलों में हम "खुशबू" तलाश रहे हैं। क्यों आज हम लोग बदल गये हैं ?
जब लोग एक-दूसरे से दिल खोल कर मिलते थे और खुल कर हँसते थे, वो खुशनुमा पल कहीं खो गये से लगते हैं।
हमने गले मिलने की सच्चे और सुखद स्पर्श को भुला दिया है और हम "social networking sites" पर एक-दूसरे से "touch" में रहने की बात करते हैं । सच , यह किसी आश्चर्य से कम नहीं ।
किसी के "दुःख" को कम करने की बात तो दूर , किसी अपने को "खुश" देख कर भी लोग "खुश" नहीं हैं । "कैक्टस" से अहसास हो गये हैं। लेकिन हम "कैक्टस" का example भी क्यों दें ?
प्रभु ने हमें मनुष्य रूप प्रदान किया है , यह हम सबका सौभाग्य है । बस "इंसान" बनना है । एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील बनना है । बदलाव खुद में ही लाना है ।
एक बार फिर इन रिश्तों के सन्दर्भ में यह पंक्तियाँ आपके साथ share करना चाहता हूँ ।
"लोग "संग-दिल" हो गये हैं।
रिश्ते "यूज एंड थ्रो" हो गये हैं।
अपनेपन की तलाश में लोग,
और भी अकेले हो गये हैं।"
अभी भी समय है , अपनापन का अहसास खुद में ही ढूँढना है ।
कभी अकेले में अगर हम खुद से बातें करें तो शायद खुद से भी अपनी नज़रें नहीं मिला पायेगें । जिंदगियाँ बदल सकती हैं , "संवेदनशीलता" की असली "खुशबू" को अनुभव करना है ।
"मिलाना है तो दिल से दिल मिला,
यूँ बेमन से हाथ मिलाना ठीक नहीं । "
आपका ही,
शलभ गुप्ता

"वास्तविक सहयोग वह है जिसमे नि:स्वार्थ भाव जुड़ा है .."

यूँ तो जीवन में "आदान-प्रदान" का सिलसिला चलता रहता है । चाहे यह "आदान - प्रदान " विचारों का हो या किसी वस्तु का ।
लेकिन वास्तविक सहयोग वह है जिसमे नि:स्वार्थ भाव जुड़ा है ।
एक सही विचारधारा , सारे समाज को बदल सकती है । आज भी कई लोग ऐसे हैं जो किसी ना किसी माध्यम से समाज को एक नया सन्देश दे जाते हैं। कुछ सिखा जाते हैं।
"आभार" शब्द का मतलब समझे बिना हमारा सारा जीवन व्यर्थ है ।
किसी के प्रति कृतज्ञता की भावना हमें यह अनुभव कराती है , कि उस व्यक्ति विशेष ने हमें नि:स्वार्थ भावना से कुछ दिया है ।
"आसाम" से साइकिल पर आ रहा वह "युवा", जुहू जंक्शन पर खड़ा वह "व्यक्ति", रेलवे ट्रैक पर आपको बचाने वाले वह "बुजुर्ग व्यक्ति "।
हम सबको ऐसे ही व्यक्तित्व का सच्चे मन से आभार व्यक्त करना चाहिए , जिन्होंने नि:स्वार्थ भावना के साथ हमें या समाज को कुछ दिया है, और वह भी बिना कुछ पाने कि इच्छा के साथ ।

9/25/2010

"गंगा का पानी तो उतर गया..मगर, आखों में पानी दे गया "

प्रिय विवेक जी,
"गंगा का पानी तो उतर गया ।
मगर, आखों में पानी दे गया ।"
प्रकृति के इस कहर को मैंने बहुत करीब से देखा । प्रकृति ने अपना बहुमूल्य खज़ाना मानव को दिल खोलकर , खुले हाथों से दिया है । लेकिन हम लोगों ने उसका आभार व्यक्त करने के बजाये , अपने स्वार्थ के कारण उसे ही खतरे में दाल दिया । और जब प्रकृति को गुस्सा आता है तब कुछ नहीं शेष रहता ....सब कुछ नष्ट हो जाता है ।
सच में विवेक भाई , हजारों घर ऐसे हैं मेरे शहर में, जहाँ सचमुच कुछ नहीं बच । बस टूटी हुई दीवारें, कई फुट मिट्टी , और बिखरे हुए सपने .... । कई घरों का तो सारा सामान ही बह गया पानी में...
बहुत कष्टदायी था यह अनुभव "जब लोगों के चारोँ तरफ पानी ही पानी था। पानी से घिरे थे। और फिर भी "पानी-पानी" मांग रहे थे। पीने का पानी चाहिए थे उनको ....
तीन दिन तक रहा पानी का ताडंव मेरे शहर में..... फिर से शुरुआत करनी है लोगों को ... बरसों लगेगें दुबारा अपना आशियाँ बनाने में..... और पता भी नहीं कि बना भी पायेगें या नहीं.... ।
यूँ तो हमारी कालोनी तक पानी नहीं आया था... हम सुरक्षित थे.... पर जो घर पानी में डूब गये वह भी तो मेरे शहर के ही लोग थे.... मेरे अपने थे....
आज भी मैं कई घर होकर आया हूँ.... तबाही के मंज़र ने मेरी भी आखें नम कर दी । क्या सब की यह तबाही एक साथ ही लिखी थी विवेक जी ?
आज देखा मैंने उस जगह जाकर .... लोग बड़ी शिद्दत से फिर से अपना घर ठीक करने में लगे थे.... एक नयी उम्मीद के साथ.... यह महसूस किया मैंने...
शलभ गुप्ता

9/19/2010

"कवितायेँ" लिखता हूँ , आपके "ब्लॉग" पर ।

प्रिय विवेक जी,
"कवितायेँ" लिखता हूँ , आपके "ब्लॉग" पर ।
"ओंस" की बूदें हो, जैसे "गुलाब" पर ।
आपका ही,
शलभ गुप्ता

आपकी यात्राएँ सफल हो ....

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार!
हम जानते हैं कि आजकल , आप अपनी फिल्म की shootings में busy हैं । कौन सी फिल्म की shooting चल रही है ?
आपकी यात्राएँ सफल हो , आपको और आपकी सारी team को हम सब की ओर से शुभकामनाएँ ...
आज , एक समाचार पत्र में लिखी दो पंक्तियाँ आपके साथ share करना चाहता हूँ।
"अगर हम किसी की ज़िन्दगी में खुशियाँ लिखने वाली "पेंसिल" नहीं हो सकते , तो कम से कम दुःख मिटाने वाला "रबर" तो बन सकते हैं। "
आपका ही,
शलभ गुप्ता

9/16/2010

आज हमारी "मुलाकात" की प्रथम वर्षगाँठ है.....

प्रिय विवेक जी,
आपके शब्द मुझे भाव-विभोर कर गये । आज के दिन "आपके प्रेरणादायी शब्दों" का उपहार मेरे लिए अमूल्य निधि है।
आज एक ख़ुशी की बात और आपके साथ share करना चाहूँगा । 16 Sept. 2009 को, मुंबई में आज के दिन ही आपसे मुलाकात हुई थी.... आज हमारी "मुलाकात" की प्रथम वर्षगाँठ है.....
यूँ तो वैसे हम दूर हैं, मगर आपके करीब होने का अहसास मेरे साथ है।
मन मेरा आपके ही आसपास है ...और हमेशा ही रहेगा...
आपका ही,
शलभ गुप्ता

9/11/2010

"श्री गणेश चतुर्थी"की हार्दिक शुभकामनाएँ ...

प्रिय विवेक जी और मेरे सभी सम्मानित ब्लागर मित्रगण ,
आप सभी को "श्री गणेश चतुर्थी"की हार्दिक शुभकामनाएँ ...
आने वाला समय, हम सभी के जीवन में प्रसन्नता और खुशहाली लेकर आये।
हम सभी अपने जीवन को सार्थक बनायें...
बस यही मेरी, भगवान् श्री गणेश जी से प्रार्थना है....
आपका ही,
शलभ गुप्ता

"शुभकामना सन्देश : उस्ताद सज्जाद जी ( गुरु जी ) के नाम"

परम श्रध्ये गुरु जी ,
सादर प्रणाम !
विवेक शर्मा जी के ब्लॉग के सभी पाठकों की ओर से ,
आपको और आपके परिवार को "ईद " की बहुत-बहुत मुबारकबाद ....
शलभ गुप्ता
एवं
ब्लॉग के सभी मेरे साथी
प्रिय विवेक जी: आपसे सादर अनुरोध है कि हमारे इस शुभकामना सन्देश को गुरु जी तक अवश्य प्रेषित करें... हम सभी आपके अत्यंत आभारी रहेंगें।

9/09/2010

आपकी लेखनी को मेरा प्रणाम!

प्रिय सलिल जी,
आपकी लेखनी को मेरा प्रणाम!
अत्यंत संवेदनशील रचना है "भिखारी का ताजमहल" ...
मानो एक-एक शब्द को आंसुओं में डुबोकर लिखा है आपने...
शब्दों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
शलभ गुप्ता

9/05/2010

आप सभी का जिंदगी भर शुक्रगुजार रहूँगा....

प्रिय दिलजीत जी , संजय जी....

विवेक जी के हौसले ने मेरी लेखनी को बहुत हिम्मत प्रदान की है.... उनके ब्लॉग के सहारे -सहारे हम सभी बहुत दूर तलक चले आये हैं..... जहाँ सिर्फ ना केवल जीने का नया हौसला मिला है....बल्कि साथ ही साथ मुझे आप सब से बहुत कुछ सीखने का सुअवसर भी मिला है.... नहीं तो अब तक में कहीं भीड़ में खो गया होता....जिंदगी में कुछ गुजरने की चाहत दिल में जगी है....

मैं दिल की गहराइयों से विवेक जी और आप सभी का जिंदगी भर शुक्रगुजार रहूँगा....

आप सभी का,

शलभ गुप्ता

9/01/2010

नटखट बेटे "वात्सल्य" का जन्मदिन (2 Sept.)

प्रिय विवेक जी,
राधे ---राधे....
हम सबके प्यारे "कृष्ण कन्हैया" के जन्मदिन की सबको हार्दिक बधाई.....
आज मेरे छोटे और नटखट बेटे "वात्सल्य" का भी जन्मदिन है.... आज वह 12 वर्ष के हो गये हैं...
आज सुबह मेरे बेटे ने कहा ..."पापा मुझे मेरे जन्मदिन पर तीन चीजें चाहिए...."घड़ी , पर्स और चश्मा "
मैंने उससे कहा देखो बेटा ..."तीनों में से एक ही चीज़ मिलेगी आपको....." अब यह आपको तय करना है... कि आपको जन्मदिन पर कौन सा उपहार चाहिए.... "
थोड़ी देर सोचने के बाद बेटे ने कहा ...ठीक है पापा फिर मुझे घड़ी चाहिए ( मैं भी उससे शायद इसी जवाब की आशा कर रहा था , सच में बहुत समझदारी की बात की उसने....)
मुझे भी अपना बचपन याद आ गया , जब मेरे पापा जी ने मुझे भी 6th class में आने पर घड़ी लाकर दी थी...
मैं तो बस भगवान् से यही प्रार्थना करता हूँ..... जीवन में हमेशा , मेरा बेटा समय के महत्त्व को समझे... उसे जीवन में सब खुशियाँ मिलें... मेरी उम्र भी उसे लग जाए...."

आज शाम को उसको घड़ी दिलानी है.... आज सुबह से ही खुश है..... अम्मा ...बाबा ...चाचा ..चाची सबसे कह रहा है... "आज शाम को पापा मुझे घड़ी दिलाने वाले हैं...."

आपका ही,

शलभ गुप्ता