7/31/2010

एक जनून ख़ुद में पैदा करना है , किनारे तक पहुँचने का....

भगवान् ने हमें मनुष्य रूप प्रदान किया है। मनुष्य होने के कारण हमें यह स्वतंत्रता मिली है, कि हम अपनी राहें ख़ुद चुनें। जीवन के सही उद्देश्य को समझते हुए ख़ुद का मूल्यांकन करें। जीवन में सकारात्मक विचारों का समावेश और उनका क्रियान्वयन ही सही अर्थों में "हमारी स्वतंत्रता" है। नकारत्मक विचार हमारे पैरों में ज़ंजीर बन कर हमें आगे बढने से रोक लेते हैं। और हमारा जीवन "किंतु-परन्तु" का गुलाम होकर रह जाता है।

जीवन लहरों की तरह है। कुछ लहरें को किनारा मिल जाता है और कुछ लहरें रास्ते में ही दम तोड़ देतीं हैं। जो लोग अपनी मंजिल तक पहुँच जाते हैं, वह "ख़ास" हो जाते हैं। वरना "आम" लोगों की तरह भीड़ में खो जाते हैं।

जब हम जीवन में विषम परिस्थितियों से गुज़र रहे होते हैं। तभी हमें जीवन के वास्तविक अर्थ का पता चलता है।

हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है ? हम अपने द्वारा बनाये गए प्रश्नों में उलझ कर रह जाते हैं। हमें इस प्रश्नों की परिधि से बाहर आकर , ख़ुद का आत्ममंथन करना है।

जीवन के कठिन पलों में भी हमें सुख के पलों को तलाश करना है। जीवन में सही रास्ते का चयन करते हुए , अपने जीवन को सार्थक बनाना है।

लहरों की तरह चलना है निरंतर , एक जनून ख़ुद में पैदा करना है , किनारे तक पहुँचने का .... अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए ख़ुद के लिए सही राहें चुनने का ।

7/28/2010

एक पाती "रवि वासवानी" जी के नाम ....

एक पाती "रवि वासवानी" जी के नाम ....
रवि जी आप, हम सब को हमेशा याद आयेगें ...... जब-जब भारतीय सिनेमा में स्वस्थ मनोरंजन की बात आयेगी ...तब-तब आप हमेशा याद आयेगें.... आपकी सारी फिल्मे देखी थी मैंने....
"जाने भी दो यारों", "चश्मे बुद्दूर " आदि आपकी यादगार फ़िल्में आपके अभिनय की याद दिलाती रहेंगी ....
आप हमसे बहुत दूर चले गये हैं..... बस कुछ यादों के साये रह गये हैं.....






7/27/2010

"कारगिल के शहीदों को शत-शत नमन..."

कल "कारगिल विजय" को 11 वर्ष बीत गए। हम, आप और सभी भारतवासियों ने अपनी भीगी पलकों के साथ सभी कारगिल के शहीदों को शत-शत नमन करते हुए श्रधांजलि अर्पित की ।
धन्य है हमारी भारत भूमि और धन्य हैं वह माताएँ जिन्होंने ऐसे वीरों को जन्म दिया।

लेकिन, शायद आज 11 बीत जाने के बाद भी हमने "कारगिल युद्घ " से कोई सबक नहीं लिया है। वरना "26/11" जैसी घटनाएँ कभी नहीं होती।

हमारे पड़ोसी मित्र, अगर मिलाना है तो दिल से दिल मिला । यूँ बेमन से हाथ मिलाना ठीक नहीं।
वे मित्रताएं , जहाँ दिल नहीं मिलते हैं , बड़ी ऊँची आवाज से टूटती हैं।
"कारगिल" और "26/11" की घटनाएं इसका ज्वलंत उदाहरणहै।
इतनी "सहनशीलता" और "उदारता" आखिर कब तक ?

7/22/2010

अच्छे भाव से किये गये कर्म का परिणाम अच्छा ही होता है।

कर्म कोई बुरा या अच्छा नहीं होता है। कर्म को करने के लिए , कार्य के भाव ही हमारे कर्म को अच्छा या बुरा कर देते हैं। अच्छे भाव से किये गये कर्म का परिणाम अच्छा ही होता है।

हमारे भावों का उदगम स्थल हमारा ह्रदय है, यदि हम ह्रदय शुद्ध नहीं रखेगें , तो हमारी भावना हमारे क़दमों को गलत राह पर ले जायेगी। अच्छे लोगों का साथ हमारे ह्रदय को शुद्ध और पवित्र रखता है... और हम अपने जीवन के कठिनतम समय में भी राह नहीं भटकते हैं....

ईश्वर के यहाँ देर है अंधेर नहीं, बुरे कर्म का बुरा और अच्छे कर्म का अच्छा फल अवश्य ही मिलता है। पर कुछ देर हो जाती है.... यही इस माया का गोरखधंधा है... यदि काम का तुरंत फल मिल जाता तो सारा संसार धर्मात्मा हो गया होता ।

7/15/2010

“घर” में एक “माँ” बहुत ज़रूरी है।"

आपका ह्रदय से कोटि-कोटि आभार । लेकिन इस कविता का विषय मुझे आपके इस सार्गार्वित लेख से ही मिला है। अंत: इस कविता के सर्जन का सारा श्रेय सिर्फ आपको ही है । मैंने कुछ नहीं लिखा है.... आपके लेख ही लिखातें हैं.... और शब्द अपनेआप ही बनते जातें हैं.... सर जी...

इस लेख में लिखी यह पंक्ति " कोई है जो अपने बच्चे के लिए खाना बनाना चाहता है, उसे बड़ा होते देखना चाहता है" दिल को उतर गयी यह पंक्ति.... उस माँ को मेरा सादर प्रणाम है यह दो पंक्तियाँ उन्हीं माँ के लिए लिखी थीं ...

"संवर जाती है ज़िन्दगी बच्चों की,
“घर” में एक “माँ” बहुत ज़रूरी है।"

वहीँ दूसरी तरफ एक दूसरी पंक्ति "Kaun kich kich uthaayega unki…" ने मन को सोचने पर मजबूर कर दिया मुझे.... क्या सच में कोई ऐसा भी सोच सकता है.....

मेरे मन में जो है वही आपके साथ share कर रहा हूँ....

7/09/2010

"संयुक्त परिवार की परंपरा ही समाज में सुधार ला सकती है। "



वर्तमान समय में समाज के इस बदले हुए चहेरे को देखकर , मेरा मन थोडा उदास तो ज़रूर है, पर मैं हताश बिलकुल नहीं हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है आने वाला समय अच्छा और बेहतर होगा।


इस बदलते हुए समाज के हालात पर, हम सभी चिंतित हैं और बदलाव भी चाहते हैं। अकेलापन, भटकाव के रास्ते पर ले जाता है। और इंसान खुद से भी दूर भागने लगता है। जिसका अंत बहुत दुखद होता है। वर्तमान में इस सन्दर्भ में कई उदाहरण हमारे सामने है।


हर व्यक्ति , आज सफल बनाना चाहता है.... बस सब भाग रहें हैं.....एक -दूसरे के पीछे... भीड़ बढती जा रही है... और एक दिन उसी भीड़ का हिस्सा हो जातें हैं... सिर्फ "पैसा" और "शानो-शौकत" ही सफल होने की डिग्री नहीं है।


सभी मिल कर सोचेगें , तभी सार्थक परिणाम सामने आयेगें। वर्तमान समय की मांग यही है कि संयुक्त परिवार की परंपरा ही समाज में सुधार ला सकती है। क्या 24 घंटों में से 24 minute भी हम अपने घर के बच्चों के साथ बिताते हैं...? शायद नहीं.... ... और बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती है । हमें कुछ समय अपने बड़ों के साथ भी बिताना चाहिए... अपने मन की बात भी उनसे share करनी चाहिए... उनके अनुभव ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकते हैं । तभी हम आने वाली नयी पीढ़ी को सार्थक और सही दिशा दे पायेगें....

7/05/2010

""सही angle" से ही सही और सुन्दर तस्वीर बनती है .."

"पहले जितने रिश्ते हैं , पहले उन्हें निभा लें, फिर नये बनायेगें।" जीवन "प्रश्न-उत्तर" का कोई सत्र नहीं हैं, एक अटूट गठबंधन हैं
इन पंक्तियों में आपने इस लेख का ही नहीं , वरन पूरे जीवन का सार लिखा हैयही हमारे जीवन का आधार भी हैजिसने , इन बातों को समझ लिया वह जीवन में कभी अकेला नहीं महसूस करेगा और ना ही कभी अकेला रहेगा
जीवन का मतलब "बिखरना" नहीं है, "बांधना" है सबको, एक साथ एक अटूट बंधन में.....
खुले मन से सबसे मिलना हैअच्छे लोगों के साथ मिल कर चलना हैजीवन जीने के लिए है , मुस्कराते हुए जीना है
(यह दोनों फूलों की तस्वीरें, आपके घर की lobby / window में रखे हुए गमलों की ही हैं , हैं ना सर जी...) दोनों तस्वीरें अलग-अलग दास्ताँ बयां कर रहीं हैं...
"सही angle" से ही सही और सुन्दर तस्वीर बनती है । " जीवन में भी बस इसी बात को आत्मसात करना है
खुद को बदलने की सार्थक पहल करते हुए , समाज को भी बदलना हैअगर हम सभी अपनी सोच को बदल कर सही दिशा की ओर चलें , तो यह समाज अपने आप बदल जायेगाआखिर यह समाज, हम सब से ही तो है

हमारा "ब्लॉग परिवार" .....

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार!
आपने कहा "I am back." लेकिन आप गये कहाँ थे ? आप तो यहीं हैं , बस इतना हुआ कि कुछ दिन Net ने साथ नहीं दिया और आप एक नयी post नहीं लिख पाए। हम सभी आपकी व्यस्तताएँ जानते हैं।
फिर भी आप अपने व्यस्त समय में से कुछ समय निकाल कर हम सभी के comments के reply देते रहें, यह हम सभी के लिए बहुत बड़ी बात है।
और मैं यह भी जानता हूँ, हमारे सभी blogger साथी दिन में बार ज़रूर ही आपके ब्लॉग पर visit करते हैं। एक नयी post के लिए , कुछ नये comments पढने के लिए.... कुछ नया एक - दूसरे से सीखने के लिए....
यह दिल से दिल का अटूट रिश्ता है कोई कहीं नहीं जाने वाला यहाँ से किसी की छोड़कर ....और जा भी नहीं पायेगा....
"इस blog को छोड़कर... ना ही हम कहीं जायेगें और ना ही आपको कहीं जाने देंगें सर जी..." इतना तो हम आपसे अपने अधिकार से कह ही सकते हैं...
यह हमारा ब्लॉग है ... हमारा "ब्लॉग परिवार" है.... है ना सर जी.....
जहाँ तक मेरा प्रश्न है... जब तक मेरी सांसे मेरा साथ देंगीं.... मैं यूँ ही हमेशा आपके ब्लॉग पर लिखता रहूँगा....
आपका ही,
शलभ गुप्ता

7/01/2010




गयी .....सर जी.... गयी .... मेरे शहर में भी बारिश ही गयी..... आपकी बात सच हो गयी.....

आज दोपहर में बारिश की नन्ही -नन्हीं बूँदें आसमान से मेरे शहर में उतर आयीं


यूँ तो कुछ ही देर का साथ रहा .....मानों "Trailer" था किसी बारिश का वो...


Picture
अभी बाकी है सर जी.....


शलभ गुप्ता

"अब तो मौसम को बदलना ही है, सब कुछ ठीक होना ही है।

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार!
Net down होने के बाद भी आपने, दूसरी जगह जाकर अन्य computer से सबके comments के जवाब दिये ।
यही तो दिल से दिल का रिश्ता है सर जी... जो हम सबको एक भावनात्मक डोर से बांधे हुए है।
आपने अपना बहुमूल्य समय हम सबको दिया , हम सभी दिल से आपका आभार व्यक्त करते हैं।
Bobby ji स्वस्थ हैं, यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है। भगवान् ने सबकी प्रार्थनायें स्वीकार कर लीं । Juhi Di और अन्य सभी परिवार के लोग भी बहुत खुश होंगें।
भगवान् से मेरी प्रार्थना है, सबके जीवन के आँगन में खुशियों के फूल हमेशा यूँ ही खिलते रहें।
सही कहा आपने , "जीवन हारने का नहीं जीतने का नाम है" । समस्या हम ही बनाते हैं और उसका समाधान दूसरे में तलाशते हैं।
कल रात से यहाँ भी कुछ मौसम बदला -बदला सा है। सच .... बारिश की आहट सुनाई देने लगी है। आपकी बात सच होने वाली है।
"अब तो मौसम को बदलना ही है।
सब कुछ ठीक होना ही है। "
आपका बहुत-बहुत शुकिया .....
शलभ गुप्ता