4/30/2010

"अच्छे भी हम , बुरे भी हम.... .."


वर्तमान समय के परिपेक्ष्य में आज हर तरफ बुराइयाँ हैं। सब जगह बस वही नज़र आती है। शायद , इसीलिए हमें अब बुराई ही अच्छी लगने लगी है।

एक-दूसरे से आगे निकलने की कभी ना खत्म होने वाली अंधी दौड़ , बस आँख पर पट्टी बांधे दौड़ रहें हैं। अपनों की ही भावनाएं आहत कर रहें हैं। सवेंदनाये शून्य होती जा रही हैं। और लोग इसे आज का culture बता रहे हैं।

जब आँखों पर पट्टी बंधी होगी तब अच्छी और बुराई में अंतर नहीं नज़र आयेगा । आखें होते हुए भी blindness है।

अच्छे भी हम , बुरे भी हम.... सफ़ेद भी हम और काले भी हम ही हैं .... बस समय -समय की बात है। भगवान् ने सिर्फ इंसान बनाया , उसके कर्मों ने ही उसे अच्छा- बुरा बना दिया।

"दस" सिर अगर बुराई के हैं तो क्या हुआ ? अच्छाई का "एक" ही सिर काफी है... बुराई पर विजय पाने के लिए... सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति वही है जो जीवन के कठिन पलों में भी अच्छाई का साथ नहीं छोड़ता है।

आखों पर बंधी पट्टी को हटाना ही होगा। पट्टी को हटाते हुए ही जीवन के सभी रंग इन्द्रधनुषी दिखने लगेंगें।

4/29/2010

एक चिठ्ठी Bobby ji के नाम .......

हम सब के प्रिय Bobby ji,
मैं जानता हूँ, आपसे बातें करने का यह उचित समय नहीं है। पर मेरा मन आपसे कुछ बातें करना चाहता है। पिछले कई दिनों से प्रतिदिन विवेक जी से आपके बारे में बात हो रही है। आपसे बिना मिले ही अपनेपन का अहसास मन में हो रहा है। सब अपने परिवार का एक अहम् हिस्सा होते हैं।
हम सभी विवेक जी के आभारी हैं , जो निरंतर आपके स्वास्थ्य के बारे में हम लोगों को अवगत करा रहे हैं।
आपके परिवार के साथ -साथ हम सब भी आपके स्वास्थय को लेकर अत्यंत चिंतित हैं। भगवान् सब ठीक करेंगें .... विवेक जी भी यही कहते हैं.... इन कुछ दिनों में हम सब एक भावनात्मक रिश्ते की डोर से बंध गये हैं।
जूही दीदी , विवेक जी सब आपसे बातें करना चाहते हैं। आपको शीघ्र से शीघ्र स्वस्थ देखना चाहते हैं। आप हमारे परिवार का एक अहम् हिस्सा हैं।
और हाँ, एक बात और कहनी है आपसे विवेक जी को मेरी कवितायें अच्छी लगती हैं.... आपको भी एक दिन जरूर सुनानी हैं।
आप शीघ्र ही स्वस्थ हों, हम सब की प्रभु से बस यही कामना है....
सादर व साभार !
आपका ही,
शलभ गुप्ता
एवं
ब्लॉग के मेरे सारे मित्र गण !

4/28/2010

श्रवण कुमार से हुई मुलाकात...

आज सुबह ९:३० बजे करीब मैं , शानू को Bike पर स्कूल छोड़ने जा रहा था। रास्ते में मुझे एक व्यक्ति सामने से आता हुआ दिखाई दिया। वह व्यक्ति अपनी बीमार माँ को अपने कंधे के सहारे , गोदी में उठाये चला आ रहा था। भीड़ भरी सड़क पर भी वह शख्स सबसे अलग पहचान बनाये हुए था। जिस माँ की गोदी में बचपन बीता था, आज उसी का वह सहारा बना था।

बड़ी -बड़ी गाड़ियों के होर्न की आवाज़ को अनसुना कर, वह अपने गंतव्य स्थान की तरफ तेज़ कदमों से बढ़ा चला जा रहा था। अपनी माँ को किसी Doctor को दिखाने जा रहा था । उसके कदमों की तेज़ गति ने मेरी Bike की गति धीमी कर दी थी।

यूँ तो उस अजनबी व्यक्ति से मेरा कुछ रिश्ता तो नहीं था, पर मेरा मन कुछ दूर तलक उसके साथ चलने को कह रहा था।

तभी शानू ने कहा ---" ताऊ जी , मोटर साइकिल चलाओ, मुझे स्कूल जाना है.... देर हो जायेगी । और फिर में अपनी Bike को स्टार्ट कर स्कूल की ओर चल पड़ा ।

मेरे दिमाग में २० साल पहले की बातें एक-एक करके सब याद आने लगी.... जब मैं भी अपनी बीमार दादी जी को इसी तरह हॉस्पिटल में दिखाने जाया करता था...

4/27/2010

"Leave it in the hands of God....."

Dear Vivek ji,
When we try our best and our best is not good enough, leave it in the hands of God.

Pin all our hopes in God, and then we will not be pinned down by man.
Now, how is Bobby ji ?
Hope he will be in good health ….
With best regards,
Shalabh Gupta

4/25/2010

"मिटा कितने ही तू निशान ....."

प्रिय विवेक जी,
"उठा तू रेत के तूफान ....
मिटा कितने ही तू निशान ...
उभर के फिर भी आऊँगा"
वाह बहुत खूब विवेक भाई..... आपका जवाब नहीं आप लाजवाब हैं..... मन के अंतर्मन में समां गई यह पंक्तियाँ .....
सब कुछ ठीक होगा....
Bobby ji ... अपनी आखें खोलिए..... अब आप कैसे हैं....
जूही दीदी , विवेक जी और हम सब आपसे बातें करना कहते हैं.....
शलभ गुप्ता

इन दो पंक्तियों के साथ....

किसी शायर की लिखी इन दो पंक्तियों से आज अपनी बात आपसे share करना चाहूँगा....

"ये खामोश मिज़ाजी , तुम्हें जीने नहीं देगी।
इस दौर में जीना है , तो कोहराम मचा दो । "

4/23/2010

"जीवन है, तो चुनौतियाँ तो होंगीं ही ...."



अँधेरे कमरे में, काले Negative द्वारा सुन्दर तस्वीरें बन जाती हैं.... यदि हम कभी वर्तमान में अंधकार का अनुभव करें , तो इसका अर्थ है "कि भगवान् आने वाले कल/ भविष्य के लिए हमारे जीवन की एक सुन्दर और भव्य तस्वीर बना रहें हैं।"
चलते-चलते , अक्सर बाधायें हमारे रास्ते में आ जाती हैं। उन परेशानियों को देखकर हमें रोना नहीं है और ना ही घबराना है। वल्कि, मन को स्थिर करके उस बाधा या परेशानी से पार पाने का उपाय सोचना है।
अक्सर कई लोग, जीवन में बहुत जल्दी हताश हो जाते हैं। ( इन कई लोगों में पहले, मैं भी शामिल था )
जीवन को ही बोझ समझने लगते हैं। कहते हैं कि बस कट रही है.... कोई उमंग नहीं कोई तरंग नहीं बस ज़िन्दगी यूँ ही गुज़र रही है, ऐसा क्यों ?
एक दिन मेरे अन्दर छुपे हुए उसी दोस्त ने ही मुझे समझाया "अरे भई , जीवन है तो चुनौतियाँ तो होंगीं ही ....उनका मुस्करा कर सामना करना है।"
अगर अविश्वास और आशंकाओं के बादल यदि हमारे मस्तिष्क में उमड़ते रहेगें , पानी बनकर हमारी आखों से बहने लगेगें । और हम इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो जायेंगें।
मन में विश्वास और कुछ कर गुजरने का संकल्प ही हमारी सफलता का मार्ग आसान करता है।

4/22/2010

"सफलता के उजाले ही उजाले मिलेंगें तुम्हें..."

अँधेरे में आखें बंद करने से, अँधेरे का डर ख़त्म नहीं होता है। बल्कि हम और भी गहन अँधेरे में चले जाते हैं।
सच कहा आपने, हमें अपनी आखें खोलनी ही होंगी। कितना ही गहरा अंधकार हो कुछ समय बाद अँधेरे में भी दिखना शुरू हो जाता है...
आस-पास का वातावरण , पहचाना सा लगने लगेगा। कहीं-ना-कहीं से आशा रुपी रौशनी की किरण दिख ही जायेगी। और फिर हर तरफ उजाला बिखरने लगेगा।
जीवन में कठिनाइयों के अंधेरों को देखकर वापस मुड़ना नहीं है और ना ही ठहरना है... बस हौले-हौले कदम बढ़ाते हुए चलते जाना है। बस अपनी आखें खुली रखते हुए चलना है....
पिछले वर्ष लिखी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ इस सन्दर्भ में आपसे share करना चाहता हूँ.... यह पंक्तियाँ भी शायद कुछ यही कहना चाहती हैं......

उदासी के अंधेरों , में नही खोना है तुम्हें

अंधेरों में भी , मुस्कराते हुए चलना है तुम्हें ।

देख लेना फिर जिंदगी में हमेशा ,

सफलता के उजाले ही उजाले मिलेंगें तुम्हें ।

4/11/2010

"रात्रि के अंतिम प्रहर के बाद, सूर्योदय तो अवश्य ही होना है.."



हमारा शानू अब स्कूल जाने लगा है। हम सभी उसके स्कूल के बारे में चिंतित थे। वैसे स्कूल तो New Delhi और Dehradun में हैं। अब हमारे छोटे से शहर में भी इस तरह का एक स्कूल शुरू हो गया है। कई सारे बच्चे हैं उस स्कूल में..... ब्रेल लिपि द्वारा पढाई होती है.... उसे नये दोस्त मिल गये हैं स्कूल में....... अपने छोटे से घर के आँगन से निकल कर अब वह स्कूल के खुले मैदान में सांस लेता है।

शानू ख़ुशी-ख़ुशी रोज स्कूल जाता है.... एक नया संसार है वहां पर उसके लिए.....मैं ही उसको स्कूल छोड़ने जाता हूँ.... एक नया अध्याय शुरू हुआ है उसके लिए... हमें पता है उसका स्कूल जाना , पढना, नये दोस्तों से मिलना और बातें करना.... ( अपने शानू जैसे कई सारे बच्चे हैं वहां पर....) उसके जीवन के लिए एक नया सूर्योदय है।
कुछ ही दिनों में बहुत समझदार जो हो गया है वह। Sunday को भी स्कूल जाना चाहता है.... अब तो... आज भी सुबह से ही मुझसे कहने लगा ..."ताऊ जी , मुझे आप स्कूल ले चलिए...."

आप देखना , वह अपनी मंजिल पाकर रहेगा.... उसके जीवन में सूर्योदय होकर रहेगा....
उसके स्कूल जाने से शानू के पापा ( मेरा छोटा भाई) भी बहुत खुश है.....कुछ दवाइयाँ , थोड़ी काउंसलिंग और शानू का स्कूल जाना ... इन तीनो बातों से उसमें बहुत परिवर्तन हो गया है... अपनी normal life में वापस आने लगा है। मेरा मानना है यह सारी बातें उसके निराशा से भरे जीवन में खुशियों का एक नया सूर्योदय लेकर आयीं हैं।
घर के सभी सदस्य भी बहुत खुश हैं..... सबसे ज्यादा ख़ुशी मुझे है मेरा भाई के परिवार में अब खुशियाँ लौटने लगी हैं...
परेशानियों और असफलताओं के काले बादल कुछ देर के लिए तो सूरज की रौशनी को रोक सकते है या कम कर सकते हैं॥ लेकिन कुछ समय बाद सूरज को फिर से निकलना ही है। क्योंकिं सूर्योदय तो हो चूका है, आशाओं के पंछी चहचहाने लगे हैं।

निराशा से भरे अँधेरे कमरों में सूरज की किरणें पहुँचने वाली हैं। बस , कमरों की खिड़कियाँ और दरवाजे खोलने भर की बात है। हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश बिखर रहा है।
समय बदलने लगा है और ज़रूर बदलेगा.... स्रष्टि का नियम है काली अँधेरी रात के बाद सूर्योदय होना ही है। नयी आशाओं का उजाला हर तरफ बिखरना ही है। सचमुच, ब्रह्माण्ड में कई सूरज हैं.... बस उनको ढूंढना बाकी है....

सच कहा आपने ! हर दिन नया सूरज... नया सूर्योदय... नयी किरणें.... एक नयी सुबह... नयी रौशनी.... नयी मंजिलें ... नयी राहें....नयी आशायें.... नया संसार.....नये लोग .....नये विचार......

बस काली घनी रात के अँधेरे से घबराना नहीं है। उसका डटकर मुकाबला करना है। क्योंकिं , रात्रि के अंतिम प्रहर के बाद सूर्योदय तो अवश्य ही होना है.......

4/06/2010

"सही मंजिल के लिए सही मार्ग का चुनाव भी बहुत ज़रूरी है..... "

आपने सही कहा , पहले अपनी मंजिल चुनो । हमें जीवन के सही लक्ष्य का निर्धारण करना है। भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठना है ।

सफ़र लम्बा सही, मगर चलते जाना है , उस मंजिल तक पहुंचना है जिसके आगे कोई राह ना हो। But no shortcut in life.... मंजिल पर पहुँचने के लिए सही मार्ग को चुनना भी अत्यंत ज़रूरी है। अगर भटक गये तो मंजिल भी खो जायेगी।

परीक्षाओं में अच्छे नंबरों से पास होना है.... उसके लिए वर्ष भर मन लगाकर पढना है .....नक़ल से नहीं पास होना है..... सही मंजिल के लिए सही मार्ग का चुनाव भी बहुत ज़रूरी है.....

हर व्यक्ति में अनंत शक्ति विधमान है बस ज़रूरत है उस शक्ति को जाग्रत करने की जो हमें मंजिल की ओर ले जाए और तक जाने के लिए मार्ग का चुनाव भी सही हो । ताकि मंजिल पर पहुचने के बाद हमें अपने पैरों में पड़े छालों के दर्द का अहसास न हो...

भगवान् भी उसी की मदद करते हैं जो हिम्मत नहीं हारते हैं। अपनी मज़बूत इच्छा शक्ति ओर मंजिल पर पहुँचने के लिए संकल्प व्यक्ति अपने हाथों को लकीरों को भी बदल सकता है।

इन दो पंक्तियों के साथ अपनी बात को अल्प-विराम देना चाहूँगा .....

"जब से चला हूँ , अभी तक सफ़र में हूँ......

मैंने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ...."

4/04/2010

"एक दिन सपनों का राही..."

ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय ..... कभी यह हसायें कभी यह रुलाये....

एक दिन सपनों का राही .....चला जाये सपनों से आगे कहाँ....... ज़िन्दगी.......

सब साथ छूट जातें हैं...... कुछ लोग याद रह जातें हैं......