12/26/2010

वजूद की तलाश है , समन्दरों की प्यास है ।
ज़िन्दगी पर शक नहीं, सांसों पर हक़ नहीं ।
सबूत मेरे पास है , वजूद की तलाश है ।
आधे-आधे बंटे हुये थे , दिल के बोझ से दबे हुये थे ।
रात को बाँध लो सरक ना जाये या सुबह से कह दो आज ना आये ।
जाने कैसा मोड़ है ये , ना खुश है ना दिल उदास है ।
वजूद की तलाश है , समन्दरों की प्यास है
टूट कर बिखर गये थे, अपनी नज़र से उतर गये थे ।
तिनका-तिनका तूने समेटा , जिस्म बनाके मुझको लपेटा ।
बिछुड़ कर भी तू जुदा नहीं है कहीं तो तुझ में ख़ास है ।
वजूद की तलाश है , समन्दरों की प्यास है
ज़िन्दगी पर शक नहीं, सांसों पर हक़ नहीं
सबूत मेरे पास है , वजूद की तलाश है
ज़िन्दगी का इम्तिहान हमने कुछ दिया इस तरह ,
वह हर रोज हमें एक नया सवाल देती रही

12/25/2010

इस सपनों की नगरी से , कोई ना कोई नाता है ज़रूर ।
वर्ना अपने घर से , कौन आता है इतनी दूर।

12/23/2010

एक नयी शुरुआत ...

एक नयी शुरुआत ...
मन में कुछ कर गुजरने की चाहत...
आजकल , ज़िन्दगी कुछ बदली-बदली सी नज़र आती है...
(सपनों की नगरी से....)

12/20/2010

"श्री सिद्धि विनायक" मंदिर - मुंबई



आज मुंबई की यात्रा शुरू हई "श्री सिद्धि विनायक" जी के मंदिर से....
मंदिर में श्री गणेश जी के दिव्य और अलोकिक दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
ह्रदय
में एक सुखद आनंद की अनुभूति हुयी दर्शन के बाद.... हजारों भक्तगण निरंतर आ रहे थे... सभी कुछ न कुछ प्रभु से मांग रहे थे... पूजा के बाद मंदिर परिसर में भी थोड़ी देर सभी बैठते थे ...
दर्शनों के बाद सभी भक्तों के चेहरों पर एक संतोष का भाव अनुभव किया मैंने... मानों उनके मन की मुराद पूरी हो गयी हो ...
सच , भगवान् के दर्शन मात्र से ही ह्रदय में एक नयी ऊर्जा का संचार हो जाता है ... बिना मागें ही सब कुछ मिल जाता है ... जीवन सफल हो जाता है ...
गं गणपते नमः !
गं गणपते नमः !
गं गणपते नमः !
गं गणपते नमः !
गं गणपते नमः !

12/17/2010

जरा सोचों तो , "पानी" से जुदा होकर "मछलियाँ" क्यों मर जातीं हैं ? क्योंकि उन्हें मालूम ही नहीं होता कि "नजदीकियां" पहले "आदत" , फिर "ज़रूरत" और फिर "ज़िन्दगी" बन जाती है ।



12/12/2010

Golden Words....

Speak love of yesterday for the instruments it gave you to carve the present. Embrace today with the arms strengthened by persistence and tomorrow will hug you back. ~ Dodinsky

12/10/2010

"कारगिल, 26/11 और अब 13/12 ....."

कारगिल, 26/11 और अब 13/12 ..... क्या यह सिर्फ "बरसियाँ" हैं..."शहीदों" को याद करने के लिए ?

12/04/2010

"बन जाऊं मैं बरगद और ,
बैठकर छावं में जिसकी ,
कर सको दूर तुम अपनी थकान । "

घुमावदार रास्ते और संकरे मोड़ों के गुज़र जाने के बाद ,
दिखाई देने लगती है बड़ी-बड़ी और खुली राहें ...

11/28/2010

मुझे अहसास है जीवन में हुई गलतियों का ...

Someone has said " “The distance between success & failure can only be measured by one’ desire.”

मुझे अहसास है जीवन में हुई गलतियों का ...

"मेरी असफलताएं मुझे यह बताती हैं, कि मैंने जीवन में सफलता की कोशिश ठीक प्रकार से नहीं की "

सही प्रयास सही दिशा में करना है... सच्चे मन से... लेकिन यह भी कहना चाहता हूँ... हार नहीं मानूगा ...

आखिर में बस एक बात और कहनी है...."सर्वश्रष्ठ आना अभी बाकी है। "

"कौन कहता है आसमा में सुराख हो नहीं सकता ।
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों । "

11/22/2010

"कह देना कोई ख़ास नहीं ........................"

कोई आपसे पूछे कौन हूँ मैं ? कह देना कोई ख़ास नहीं ....
एक पागल है कच्चा-पक्का सा, एक झूठ है आधा-सच्चा सा,
जज़्बात के नाम पर एक पर्दा सा, बस एक बहाना अच्छा सा,
जो पास होकर भी पास नहीं, पर उससे छुपा कोई राज़ नहीं ...
कोई आपसे पूछे कौन हूँ मैं ? कह देना कोई ख़ास नहीं ....

11/21/2010

"ज़िन्दगी इन पलों को फिर से नहीं दोहरायेगी ..."

एक दिन ज़िन्दगी ऐसे मुकाम पर पहुँच जायेगी , दोस्ती तो सिर्फ यादों में ही रह जायेगी ।
हर एक कप कॉफी , याद दोस्तों की दिलायेगी। और हँसते- हँसते फिर आखें नम हो जायेगीं ।
ऑफिस के चैम्बर में classroom नज़र आयेगी , पर चाहने पर भी proxy नहीं लग पायेगी ।
पैसा तो बहुत होगा, मगर उन्हें लूटाने की वजह ही खो जायेगी ।
जीलो खुल कर इस पल को मेरे दोस्तों , ज़िन्दगी इन पलों को फिर से नहीं दोहरायेगी ।
क्यों ऐसा ही होगा ना ...?

11/17/2010

( Shalabh means - Parwaana )

मेरी हर साँस में संघर्ष का तूफान है ।
उद्ती की हर लहर में गर्त का अरमान है ।
जीवन में जय पराजय की बात कोई नहीं,
"शलभ" की मौत तो जीवन से महान है ।
( Shalabh means - Parwaana )

11/15/2010

About Life....

The biggest loss in life?

“KISI KI AANKHON ME AANSU HONA AAP KI VAJAH SE”

The biggest achievement in life?

“KISI KI AANKHON ME AANSU HONA, AAP KE LIYE”

11/05/2010

"जलो दीये पर रहे ध्यान इतना , अँधेरा धरा पर कहीं रह ना जाये । "



दीपावली के इस शुभ अवसर पर मेरे परिवार की ओर से आपको और आपके परिवार को अनन्त मंगलकामनायें ।

हर घर में दीपावली हो , हर घर में खुशियों के नये दीप प्रज्वलित हों ।
हर व्यक्ति के जीवन में खुशहाली और सम्पन्नता के नये - नये अवसर आयें ।

माँ लक्ष्मी जी और श्री गणेश जी से बस यही मेरी प्रार्थना है ...

"जलो दीये पर रहे ध्यान इतना ,
अँधेरा धरा पर कहीं रह ना जाये । "

11/04/2010

पहली बार एक color mobile खरीद कर लाये।

बात तो छोटी सी है, मगर बच्चों से जुडी है...कल हम पहली बार एक color mobile खरीद कर लाये। ।
बच्चों की बड़ी इच्छा थी , "पापा आप एक color mobile ज़रूर लेना... " रोज कई दिनों से कह रहे थे...
.... बेटा बहुत खुश हुआ.... कहने लगा ..पापा , इसमें तो बहुत सारे function हैं... games भी बहुत सारे हैं॥ आजकल , बच्चों के खिलोने तो यही हैं....
हमें याद आता है अपना बचपन.... हम तो मिट्टी के खिलोने से ही खेलते थे.... और टूट जाने पर फिर बहुत रोया करते थे...
चार साल का साथ रहा B&W mobile का... पुराने मोबाइल का साथ छूट जाने का थोडा दुःख भी था... चार साल का साथ जो था... मगर नये मोबाइल के आने से बच्चों में एक नयी ख़ुशी थी....

यह छोटी - छोटी बातें भी जीवन में खुशियों के नये फूल खिला जाती हैं....
बच्चों की ख़ुशी में ही अपनी खुशियाँ है....है ना...
शलभ गुप्ता

11/03/2010

"धनतेरस की हार्दिक शुभकामनायें ..."



"धनतेरस की हार्दिक शुभकामनायें

साकार को सम्पूर्ण कल्पनायें "

ब्लॉग जगत के मेरे सभी सम्मानित मित्रों को धनतेरस की बधाई ...

शलभ गुप्ता

10/26/2010

ज़िन्दगी सौ मीटर की रेस नहीं...

"दौड़ने से पहले हमें चलना सीखना है,
ज़िन्दगी सौ मीटर की रेस नहीं ...
बल्कि हजारों किलोमीटर लम्बी एक मेराथन है । "

10/24/2010

नरेश शाडिल्य जी की दो पंक्तियाँ...

" खुद्दारी के कंकड़ भी, हीरों से ऊपर रखना।
लाख बुलंदी पर पहुँचों , खुद को धरती पर रखना "

10/22/2010

आपको "शरद पूर्णिमा" की हार्दिक शुभकामनायें....

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार !
आपको "शरद पूर्णिमा" की हार्दिक शुभकामनायें....
आज हमारी sister के यहाँ भगवान् श्री सत्यनारायण जी की कथा हुई । हम सब ने सपरिवार कथा को सुनकर धर्मलाभ प्राप्त किया ।
मुझे पता है , आज आपके घर में भी कथा का आयोजन अवश्य हुआ होगा....
अनगिनित युगों से निरंतर चंद्रमा अपने प्रकाश से हम सभी पर अपनी अमृत वर्षा कर रहें हैं... कभी भी किसी के साथ कोई अन्तर नहीं करते हैं... बस हम ही बदल गये हैं.....
हम सब अपने जीवन में चंद्रमा की शीतलता आत्मसात करें... भगवान् से बस यही प्रार्थना है...
आप भी आज रात का चंद ज़रूर देखना... आज की चांदनी की बात ही कुछ और होगी....है ना॥
आपका ही,
शलभ गुप्ता

10/20/2010

"सफलताओं तक ही जीवन की समग्रता सीमित नहीं ..."

समस्त परिक्षाएँ पास करने और उज्जल भविष्य के निर्माण से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है एक इंसान की एक इंसान के प्रति संवेदनशीलता जमीन पर गिरे पत्ते और पहाड़ी पर खड़े ऊँचे दरख्तों के प्रति हमारी संवेदनशीलता
सफलताओं तक ही जीवन की समग्रता सीमित नहीं है। जीवन तो एक विशाल नदी और उसकी अपार जलराशि के सामान है। जिसका ना आदि है और ना अंत
तीव्र गति से बहती हुई इस धारा से हम एक बाल्टी जल निकाल लेतें हैं और वह घिरा हुआ सीमित जल ही हमारा जीवन बन जाता है यही हमारा संस्कार है और हमारा अनंत दुःख भी।
वर्षा ऋतु में बूंदों का बरसना, नदियों का कल-कल करके बहना, पक्षियों का चहकना , बच्चों का मुस्कराना बस यही बातें तो सजीव है इस संसार में बाकी सब निर्जीव है।
सूरज की तेज़ तपन में चलते गरीब के नंगे पाँव , रात को फुटपाथ पर सोते बेबस लोग, सिर्फ पानी पीकर दिन भर काम करते हुए लोग, एक वक्त की रोटी के लिए दोनों वक्त काम करते लोग , जिस्म पर पसीने की बूदें मोती जैसी चमकती हुई , बस यही तो एक सच्चाई है इस संसार में बाकी सब झूठ है।
"फुटपाथ पर नंगे बदन, उसे चैन से सोता देख कर,
मखमली गद्दों पर , नींद ना आई मुझे रात भर "

10/19/2010

"मुझे नि:शब्द कर गये हैं........"

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार !
आपका मेरे ब्लॉग पर आना और फिर कुछ लिखना... मेरे ह्रदय को एक अटूट भावनात्मक संबंधों की अनुभूति दे गये... आपके यह शब्द उम्रभर के लिए अब मेरी अमूल्य धरोहर हैं....
अपनत्व से परिपूर्ण आपके भावुक शब्द , मुझे नि:शब्द कर गये हैं.... और मेरी पलकों को भी नम कर गये हैं....
लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूँ पर आज, मैं इससे अधिक और कुछ नहीं कह पा रहा हूँ... आपसे....
आपका ही,
शलभ गुप्ता

10/18/2010

"जब आपसे जुड़ा हूँ तो साथ भी निभाऊंगा... "

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार!
बस, इन धडकनों पर मेरा कोई बस नहीं है.... जब तक मेरी साँसें मेरा साथ देंगी.... जब आपसे जुड़ा हूँ तो साथ भी ज़रूर निभाऊंगा...
हम जानते हैं आपका समय बहुमूल्य है.... आज कुछ लम्हों के लिए आपको हम , अपनी छत पर ले चलते हैं... इंकार मत कीजिएगा.... बस मेरे संग-संग छत पर आईये... आप देखना सुबह-सुबह छत पर कौन मेरा इंतज़ार करता है ? आप भी उनसे मिलकर ख़ुशी का अनुभव करेगें।
यह मेरी सुबह की diary का एक पन्ना है... कुछ अपने मन के विचार लिखे हैं.... "मेरी ज़िन्दगी की सुबह शुरू होती है..., जब चिड़ियाँ मेरी छत पर आकर मुझे बुलाती है.....
पूरा लेख मेरे ब्लॉग पर है... आपसे विन्रम अनुरोध है, कृपया मेरे ब्लॉग के इस link पर click करिये ....
http://shalabhguptaviews.blogspot.com/2010/10/blog-post_16.html

आपका ही,
शलभ गुप्ता
www.shalabhguptaviews.blogspot.com

10/16/2010

"जब मेरी छत पर चिड़ियाँ आकर चहचहाती हैं,,,,"



मेरी सुबह शुरू होती है, जब मेरी छत पर चिड़ियाँ आकर चहचहाती हैं, और धीरे कबूतर भी आकर "गुटरगूं" करते है...इनके साथ-साथ कुछ "कौए" भी जाते हैं.... और मेरा इंतज़ार करते हैं.....

मैं रोजाना ही , अन्य दिनों की तरह अपने हाथ में "बाजरे के दाने " से भरा हुआ जार लेकर छत पर जाता हूँ..... मेरी छत पर एक कमरा भी है जिसमे घर के "चावल " रखे होते हैं... एक -एक मुठ्ठी "चावल" और "बाजरा" अपनी छत की मुंडेर पर रख देता हूँ.... साथ में एक बड़ा कटोरा पानी भरकर रख देता हूँ.....

मन को बहुत सकून देता है यह सब करना.... कई साल से यह क्रम निरंतर चल रहा है.... और फिर एक-एक मुठ्ठी उस मुंडेर के कोने में भी रख देता हूँ... जहाँ हवा का असर कम हो...क्योंकिं कभी-कभी तेज़ हवा से मुंडेर पर रखे सारे दाने बिखर कर नीचे सड़क पर गिर जाते हैं.... दो-मंजिला घर है....

कबूतर और कौए तो शायद कही दूर से आते हैं ....मगर चिड़ियाँ ( गौरया) हमारे पड़ोस वाले घर में जो एक छोटा सा पेड़ है... सब वहीं रहती हैं....



शुरू -शुरू में शौक था.....पर अब एक ज़िम्मेदारी सी महसूस होती है.... रोज जो आते हैं अब वो सब... पक्षी... जिस दिन थोडा लेट हो जाता हूँ.... मन में एक अपराध बोध सा लगता है....

ना जाने कैसे यह मेरा कार्य शुरू हुआ...और अब मेरी ज़िन्दगी की सुबह का अटूट हिस्सा है.... अपनेपन का अहसास दिला जाते हैं... मेरे करीब जाते हैं.... उड़ते भी नहीं हैं...

एक
अटूट नाता सा जो जुड़ गया है इन सबके साथ....
आप सही कहते हैं.... जब हम किसी से जुड़े हैं तो खुले मन से साथ निभाना भी है...है ना...
बस प्रभु से यही चाहता हूँ....यह पक्षियों की टोली हमेशा मेरे घर की छत पर आती रहे... "इंतज़ार और मिलने " की यह परंपरा बस यूँ ही चलती रहे....
मैं इस दुनिया में रहूँ या ना रहूँ.... मेरे जाने के बाद यह ज़िम्मेदारी मेरे बच्चे इसी तरह निभाते रहें.....

10/15/2010

"जब हम जुड़े हैं तो निभाना भी चाहिए..."

जब हम किसी से जुड़े हैं तो निभाना भी चाहिए.... सच कहा आपने.... अगर मिलाना है तो दिल से दिल मिला । यूँ बेमन से हाथ मिलाना ठीक नहीं। वे मित्रताएं , जहाँ दिल नहीं मिलते हैं , बड़ी ऊँची आवाज से टूटती हैं।
हम
लोग हर बात में अपना "फायदा" ही तलाशते हैं... क्यों ? हम क्यों बदल गये हैं ? क्यों ?

हम सभी इस वर्तमान स्थिति को देखकर थोड़े "उदास" ज़रूर हैं... पर "हताश" नहीं हैं..... समय ज़रूर बदलेगा ...और ज़रूर बदलेगा...
जीवन को कल-कल करता हुआ एक झरना बनाना है ठहरा हुआ तालाब का पानी नहीं।

"सिर्फ विस्तार ही नहीं,गहराई भी चाहिये ।
कहना ही पर्याप्त नहीं,बातों में असर भी चाहिये।
सीमाओं से पार आकर,नदिया जैसा उन्मुक्त बहना चाहिये।
"राज", जीवन में सबको अपना बनाना है अगर...
"पोखर" नहीं , "महासागर" बनना चाहिए । "

"निष्काम कर्मयोग की जागृत हो भावनायें ..."

ज़िन्दगी में सबसे महत्पूर्ण बात यह है कि जब हम दूसरों के लिए कोई काम करते हैं....तो उस कार्य के पीछे हमारा कोई व्यक्तिगत स्वार्थ तो नहीं छुपा है ? हम लोग क्यों अपनी सोच को व्यवसायिक करते जा रहे हैं...?
बिना किसी "deal" के क्यों नहीं हम किसी से क्यों नहीं मिलते हैं ?
आज समाज में ऐसे व्यक्तित्व बहुत कम हैं जिन्होंने नि:स्वार्थ भावना के साथ हमें या समाज को कुछ दिया है, और वह भी बिना कुछ पाने कि इच्छा के साथ ।

Few lines of one of my poem....

"जीवन में किसी को , ना कोई कष्ट पहुँचाये ।
पीर परायी जब अपनी बन जाये ।
निष्काम कर्मयोग की जागृत हो भावनायें ।
"प्रेम" और "त्याग" की अंकुरित हो संवेदनायें ।
मेरी नज़र में वही बस "सच्चा कर्म" कहलाये।
आओ, हम सब मिल कर इस धरती को स्वर्ग बनायें । "

हमें खुद को ही बदलना है .....अपनी सोच को बदलना है.... कहीं न कहीं हम खुद भी ज़िम्मेदार हैं इस स्थिति के...
जब हम किसी पर अपनी "एक" ऊँगली उठाते हैं तो बाकि "चार" उँगलियाँ हमारी खुद की तरफ होती है... इसीलिए अभी भी वक्त है हमें खुद को बदलना ही होगा....

10/14/2010

"Saina Nehwal को गोल्ड मेडल...."



भारत का Medals का शानदार शतक ....... सभी भारत वासियों को हार्दिक बधाई.....
Saina Nehwal को गोल्ड मेडल .......... उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनायें....
हॉकी
में मिली करारी हार ने सभी का दिल दुखाया था...
पर Saina नेहवाल ने गोल्ड मेडल के साथ सभी देशवासियों का दिल भी जीता है...
शलभ गुप्ता

10/13/2010

"महालक्ष्मी मंदिर ...- मुंबई "



सच कहा आपने .....महालक्ष्मी मंदिर का वातावरण ह्रदय को एक अध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करने वाला है....
मैं जब भी मुंबई गया हूँ.... "महालक्ष्मी मंदिर", "सिद्धिविनायक मंदिर" और "हाजी अली" ज़रूर जाता हूँ....
थोड़ी देर के लिए ही सही, हम सब कुछ भूल जाते हैं मंदिर में जाकर....
"
कमल के पुष्प" अर्पण करते हैं....
माँ
के दर्शन करके मन को असीम शांति मिलती है....
माँ सबकी मुरादें पूरी करें.... जय माता दी....

10/11/2010

रविवार का दिन ( 10/10/10)

रविवार का दिन ( 10/10/10) : नवरात्रों की पूजा से दिन की शुरुआत , "सचिन" के 14000 रन , भारत की पाक पर हॉकी में शानदार जीत ( चक दे इंडिया) , मेडल तालिका में फिर से दूसरा स्थान , सब कुछ अच्छा - अच्छा रहा दिन भर ....
और फिर रात में "UTV MOVIES" पर "भूतनाथ" पिक्चर का आना ..... हमारे घर में बच्चों के चेहरे पर खुशियाँ कुछ इस तरह छाईं... "दूध" पर
जैसे आ गयी हो बहुत सारी "मलाई"....
सम्पूर्ण फिल्म में एक पारवारिक फिल्म ... जिस फिल्म में एक साथ अमित जी, शारुख खान जी ओर जूही जी का सशक्त अभिनय है वहीँ "बंकू भैया" ने भी बहुत सजीव अभिनय किया है.... शुरू से अंत तक "बंकू भैया" ही छाए रहे फिल्म में.....
भूतनाथ फिल्म के कई सीन सबको भावुक कर जाते हैं.... "बंकू" भैया का सीड़ियों से गिरना, आत्मा की मुक्ति के लिए घर में पूजा, जहाँ एक ओर उनका मुक्त होना ज़रूरी है वहीँ उनका "बंकू" से बिछुड़ना .....छत पर आकर "बंकू" का भूतनाथ को आवाज़ देकर बुलाना ........
ओर फिल्म का आखिरी सीन , जब फिर दोनों मिलते गले मिलते हैं.... सबसे नीचे दाहिनी तरफ लिखी एक पंक्ति "To be continued......" सभी के होठों पर मुस्कराहट दे जाता है ।
इसी line से "भूतनाथ - 2" की कहानी शुरू होती है..... आपको "भूतनाथ - 2" के लिए शुभकामनायें...
शलभ गुप्ता

10/08/2010

"नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनायें....."



आप सभी को "नवरात्रों" की हार्दिक शुभकामनायें..."
"सबके जीवन में हमेशा सुख, सम्रद्धि और खुशहाली रहे ",
हम सबकी , माँ से बस यही प्रार्थना है। Add Image

10/06/2010

हमारे सभी खिलाड़ियों को दिल से बधाई......

अच्छी ख़बरें, सिन्दूरी सुबह और शानदार दिन लेकर आती हैं।
बहुत दिनों के बाद आज सुबह अखबार पढना अच्छा लगा विवेक जी...
हर newspaper का पहला पन्ना सजा हुआ था, सोने के तमगों वाली तस्वीरों से.....
आगाज़ अच्छा हुआ है..... आशा है अभी और भी बेहतर प्रदर्शन होगा ....
हर तस्वीर एक नयी कहानी कह रही थी.....
हमारे सभी खिलाड़ियों को दिल से बधाई ....
जय हिंद....

10/05/2010

सभी खिलाडियों को हार्दिक बधाई ...

ओलिंपिक गोल्ड मेडल विनर शूटर अभिनव बिंद्रा और गगन नारंग ने भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाते हुए दस मीटर एयर राइफल पेयर्स में खेलों का नया रेकॉर्ड भी बनाया।
भारत को दूसरा गोल्ड अनीसा सैय्यद और सर्नोबत राही ने " 25 मीटर महिला पिस्टल पेयर्स" में दिलाया।
इन सभी खिलाडियों ने भारत का नाम रोशन किया है ।
हमारी "टीम इंडिया" को भी टेस्ट मैच जीतने पर बहुत बधाई .... V.V.S. Laxman ने बचा लिया आज तो....
हमारे ब्लॉग परिवार की ओर से सभी खिलाडियों को हार्दिक बधाई ...

9/26/2010

""कैक्टस" से अहसास हो गये हैं ..."

आपके लेख के दूसरे भाग , जिसमे आपने वर्तमान समय में "रिश्तों" पर लिखा है । अब इस सन्दर्भ में आपसे कुछ कहना चाहूँगा।
आपकी यह बात भी आज के सन्दर्भ में बिलकुल सही है , सच बहुत कुछ बदल गया है । हमारे अहसास बदल गये है । हमारा "आज" "व्यवसायिक हो गया है । किसी की मुस्कराहट भी अब तो "प्लास्टिक" जैसी लगती है ।
कागज़ के फूलों में हम "खुशबू" तलाश रहे हैं। क्यों आज हम लोग बदल गये हैं ?
जब लोग एक-दूसरे से दिल खोल कर मिलते थे और खुल कर हँसते थे, वो खुशनुमा पल कहीं खो गये से लगते हैं।
हमने गले मिलने की सच्चे और सुखद स्पर्श को भुला दिया है और हम "social networking sites" पर एक-दूसरे से "touch" में रहने की बात करते हैं । सच , यह किसी आश्चर्य से कम नहीं ।
किसी के "दुःख" को कम करने की बात तो दूर , किसी अपने को "खुश" देख कर भी लोग "खुश" नहीं हैं । "कैक्टस" से अहसास हो गये हैं। लेकिन हम "कैक्टस" का example भी क्यों दें ?
प्रभु ने हमें मनुष्य रूप प्रदान किया है , यह हम सबका सौभाग्य है । बस "इंसान" बनना है । एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील बनना है । बदलाव खुद में ही लाना है ।
एक बार फिर इन रिश्तों के सन्दर्भ में यह पंक्तियाँ आपके साथ share करना चाहता हूँ ।
"लोग "संग-दिल" हो गये हैं।
रिश्ते "यूज एंड थ्रो" हो गये हैं।
अपनेपन की तलाश में लोग,
और भी अकेले हो गये हैं।"
अभी भी समय है , अपनापन का अहसास खुद में ही ढूँढना है ।
कभी अकेले में अगर हम खुद से बातें करें तो शायद खुद से भी अपनी नज़रें नहीं मिला पायेगें । जिंदगियाँ बदल सकती हैं , "संवेदनशीलता" की असली "खुशबू" को अनुभव करना है ।
"मिलाना है तो दिल से दिल मिला,
यूँ बेमन से हाथ मिलाना ठीक नहीं । "
आपका ही,
शलभ गुप्ता

"वास्तविक सहयोग वह है जिसमे नि:स्वार्थ भाव जुड़ा है .."

यूँ तो जीवन में "आदान-प्रदान" का सिलसिला चलता रहता है । चाहे यह "आदान - प्रदान " विचारों का हो या किसी वस्तु का ।
लेकिन वास्तविक सहयोग वह है जिसमे नि:स्वार्थ भाव जुड़ा है ।
एक सही विचारधारा , सारे समाज को बदल सकती है । आज भी कई लोग ऐसे हैं जो किसी ना किसी माध्यम से समाज को एक नया सन्देश दे जाते हैं। कुछ सिखा जाते हैं।
"आभार" शब्द का मतलब समझे बिना हमारा सारा जीवन व्यर्थ है ।
किसी के प्रति कृतज्ञता की भावना हमें यह अनुभव कराती है , कि उस व्यक्ति विशेष ने हमें नि:स्वार्थ भावना से कुछ दिया है ।
"आसाम" से साइकिल पर आ रहा वह "युवा", जुहू जंक्शन पर खड़ा वह "व्यक्ति", रेलवे ट्रैक पर आपको बचाने वाले वह "बुजुर्ग व्यक्ति "।
हम सबको ऐसे ही व्यक्तित्व का सच्चे मन से आभार व्यक्त करना चाहिए , जिन्होंने नि:स्वार्थ भावना के साथ हमें या समाज को कुछ दिया है, और वह भी बिना कुछ पाने कि इच्छा के साथ ।

9/25/2010

"गंगा का पानी तो उतर गया..मगर, आखों में पानी दे गया "

प्रिय विवेक जी,
"गंगा का पानी तो उतर गया ।
मगर, आखों में पानी दे गया ।"
प्रकृति के इस कहर को मैंने बहुत करीब से देखा । प्रकृति ने अपना बहुमूल्य खज़ाना मानव को दिल खोलकर , खुले हाथों से दिया है । लेकिन हम लोगों ने उसका आभार व्यक्त करने के बजाये , अपने स्वार्थ के कारण उसे ही खतरे में दाल दिया । और जब प्रकृति को गुस्सा आता है तब कुछ नहीं शेष रहता ....सब कुछ नष्ट हो जाता है ।
सच में विवेक भाई , हजारों घर ऐसे हैं मेरे शहर में, जहाँ सचमुच कुछ नहीं बच । बस टूटी हुई दीवारें, कई फुट मिट्टी , और बिखरे हुए सपने .... । कई घरों का तो सारा सामान ही बह गया पानी में...
बहुत कष्टदायी था यह अनुभव "जब लोगों के चारोँ तरफ पानी ही पानी था। पानी से घिरे थे। और फिर भी "पानी-पानी" मांग रहे थे। पीने का पानी चाहिए थे उनको ....
तीन दिन तक रहा पानी का ताडंव मेरे शहर में..... फिर से शुरुआत करनी है लोगों को ... बरसों लगेगें दुबारा अपना आशियाँ बनाने में..... और पता भी नहीं कि बना भी पायेगें या नहीं.... ।
यूँ तो हमारी कालोनी तक पानी नहीं आया था... हम सुरक्षित थे.... पर जो घर पानी में डूब गये वह भी तो मेरे शहर के ही लोग थे.... मेरे अपने थे....
आज भी मैं कई घर होकर आया हूँ.... तबाही के मंज़र ने मेरी भी आखें नम कर दी । क्या सब की यह तबाही एक साथ ही लिखी थी विवेक जी ?
आज देखा मैंने उस जगह जाकर .... लोग बड़ी शिद्दत से फिर से अपना घर ठीक करने में लगे थे.... एक नयी उम्मीद के साथ.... यह महसूस किया मैंने...
शलभ गुप्ता

9/19/2010

"कवितायेँ" लिखता हूँ , आपके "ब्लॉग" पर ।

प्रिय विवेक जी,
"कवितायेँ" लिखता हूँ , आपके "ब्लॉग" पर ।
"ओंस" की बूदें हो, जैसे "गुलाब" पर ।
आपका ही,
शलभ गुप्ता

आपकी यात्राएँ सफल हो ....

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार!
हम जानते हैं कि आजकल , आप अपनी फिल्म की shootings में busy हैं । कौन सी फिल्म की shooting चल रही है ?
आपकी यात्राएँ सफल हो , आपको और आपकी सारी team को हम सब की ओर से शुभकामनाएँ ...
आज , एक समाचार पत्र में लिखी दो पंक्तियाँ आपके साथ share करना चाहता हूँ।
"अगर हम किसी की ज़िन्दगी में खुशियाँ लिखने वाली "पेंसिल" नहीं हो सकते , तो कम से कम दुःख मिटाने वाला "रबर" तो बन सकते हैं। "
आपका ही,
शलभ गुप्ता

9/16/2010

आज हमारी "मुलाकात" की प्रथम वर्षगाँठ है.....

प्रिय विवेक जी,
आपके शब्द मुझे भाव-विभोर कर गये । आज के दिन "आपके प्रेरणादायी शब्दों" का उपहार मेरे लिए अमूल्य निधि है।
आज एक ख़ुशी की बात और आपके साथ share करना चाहूँगा । 16 Sept. 2009 को, मुंबई में आज के दिन ही आपसे मुलाकात हुई थी.... आज हमारी "मुलाकात" की प्रथम वर्षगाँठ है.....
यूँ तो वैसे हम दूर हैं, मगर आपके करीब होने का अहसास मेरे साथ है।
मन मेरा आपके ही आसपास है ...और हमेशा ही रहेगा...
आपका ही,
शलभ गुप्ता

9/11/2010

"श्री गणेश चतुर्थी"की हार्दिक शुभकामनाएँ ...

प्रिय विवेक जी और मेरे सभी सम्मानित ब्लागर मित्रगण ,
आप सभी को "श्री गणेश चतुर्थी"की हार्दिक शुभकामनाएँ ...
आने वाला समय, हम सभी के जीवन में प्रसन्नता और खुशहाली लेकर आये।
हम सभी अपने जीवन को सार्थक बनायें...
बस यही मेरी, भगवान् श्री गणेश जी से प्रार्थना है....
आपका ही,
शलभ गुप्ता

"शुभकामना सन्देश : उस्ताद सज्जाद जी ( गुरु जी ) के नाम"

परम श्रध्ये गुरु जी ,
सादर प्रणाम !
विवेक शर्मा जी के ब्लॉग के सभी पाठकों की ओर से ,
आपको और आपके परिवार को "ईद " की बहुत-बहुत मुबारकबाद ....
शलभ गुप्ता
एवं
ब्लॉग के सभी मेरे साथी
प्रिय विवेक जी: आपसे सादर अनुरोध है कि हमारे इस शुभकामना सन्देश को गुरु जी तक अवश्य प्रेषित करें... हम सभी आपके अत्यंत आभारी रहेंगें।

9/09/2010

आपकी लेखनी को मेरा प्रणाम!

प्रिय सलिल जी,
आपकी लेखनी को मेरा प्रणाम!
अत्यंत संवेदनशील रचना है "भिखारी का ताजमहल" ...
मानो एक-एक शब्द को आंसुओं में डुबोकर लिखा है आपने...
शब्दों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
शलभ गुप्ता

9/05/2010

आप सभी का जिंदगी भर शुक्रगुजार रहूँगा....

प्रिय दिलजीत जी , संजय जी....

विवेक जी के हौसले ने मेरी लेखनी को बहुत हिम्मत प्रदान की है.... उनके ब्लॉग के सहारे -सहारे हम सभी बहुत दूर तलक चले आये हैं..... जहाँ सिर्फ ना केवल जीने का नया हौसला मिला है....बल्कि साथ ही साथ मुझे आप सब से बहुत कुछ सीखने का सुअवसर भी मिला है.... नहीं तो अब तक में कहीं भीड़ में खो गया होता....जिंदगी में कुछ गुजरने की चाहत दिल में जगी है....

मैं दिल की गहराइयों से विवेक जी और आप सभी का जिंदगी भर शुक्रगुजार रहूँगा....

आप सभी का,

शलभ गुप्ता

9/01/2010

नटखट बेटे "वात्सल्य" का जन्मदिन (2 Sept.)

प्रिय विवेक जी,
राधे ---राधे....
हम सबके प्यारे "कृष्ण कन्हैया" के जन्मदिन की सबको हार्दिक बधाई.....
आज मेरे छोटे और नटखट बेटे "वात्सल्य" का भी जन्मदिन है.... आज वह 12 वर्ष के हो गये हैं...
आज सुबह मेरे बेटे ने कहा ..."पापा मुझे मेरे जन्मदिन पर तीन चीजें चाहिए...."घड़ी , पर्स और चश्मा "
मैंने उससे कहा देखो बेटा ..."तीनों में से एक ही चीज़ मिलेगी आपको....." अब यह आपको तय करना है... कि आपको जन्मदिन पर कौन सा उपहार चाहिए.... "
थोड़ी देर सोचने के बाद बेटे ने कहा ...ठीक है पापा फिर मुझे घड़ी चाहिए ( मैं भी उससे शायद इसी जवाब की आशा कर रहा था , सच में बहुत समझदारी की बात की उसने....)
मुझे भी अपना बचपन याद आ गया , जब मेरे पापा जी ने मुझे भी 6th class में आने पर घड़ी लाकर दी थी...
मैं तो बस भगवान् से यही प्रार्थना करता हूँ..... जीवन में हमेशा , मेरा बेटा समय के महत्त्व को समझे... उसे जीवन में सब खुशियाँ मिलें... मेरी उम्र भी उसे लग जाए...."

आज शाम को उसको घड़ी दिलानी है.... आज सुबह से ही खुश है..... अम्मा ...बाबा ...चाचा ..चाची सबसे कह रहा है... "आज शाम को पापा मुझे घड़ी दिलाने वाले हैं...."

आपका ही,

शलभ गुप्ता

8/15/2010

जीवन है, तो चुनौतियाँ तो होंगीं ही ....

प्रिय विवेक जी,
सादर नमस्कार!
लेख की पहली पंक्ति से लेकर आखिरी पंक्ति तक आपने अपने अनुभव को आपने अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में अभिव्यक्त किया है..... ज़िन्दगी में होने वाली हर छोटी-बड़ी घटना , एक सिखावन बनती है।
अँधेरे कमरे में, काले Negative द्वारा सुन्दर तस्वीरें बन जाती हैं.... यदि हम कभी वर्तमान में अंधकार का अनुभव करें , तो इसका अर्थ है "कि भगवान् आने वाले कल/ भविष्य के लिए हमारे जीवन की एक सुन्दर और भव्य तस्वीर बना रहें हैं।"
चलते-चलते , अक्सर बाधायें हमारे रास्ते में आ जाती हैं। उन परेशानियों को देखकर हमें रोना नहीं है और ना ही घबराना है। वल्कि, मन को स्थिर करके उस बाधा या परेशानी से पार पाने का उपाय सोचना है। जीवन के कठिन पलों को भी सहज होकर जीना, मुश्किल ज़रूर है मगर असंभव नहीं।
अगर अविश्वास और आशंकाओं के बादल यदि हमारे मस्तिष्क में उमड़ते रहेगें , पानी बनकर हमारी आखों से बहने लगेगें । और हम इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो जायेंगें।
मानसिक संतुलन बनाये रखना , प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने का सबसे अच्छा इलाज है। हमारा शांत मन , आशीवाद और शुभकामनाएँ ले कर आता है।
आप सही कहते हैं..... जिंदगी कई बार फिर से शुरू करनी पड़ती है..... जीवन है, तो चुनौतियाँ तो होंगीं ही ....उनका मुस्करा कर सामना करना है।"
परेशानियों और असफलताओं के काले बादल कुछ देर के लिए तो सूरज की रौशनी को रोक सकते है या कम कर सकते हैं॥ लेकिन कुछ समय बाद सूरज को फिर से निकलना ही है।
स्रष्टि का नियम है काली अँधेरी रात के बाद सूर्योदय होना ही है। नयी आशाओं का उजाला हर तरफ बिखरना ही है।
बस काली घनी रात के अँधेरे से घबराना नहीं है। उसका डटकर मुकाबला करना है। क्योंकिं , रात्रि के अंतिम प्रहर के बाद सूर्योदय तो अवश्य ही होना है.......
आपका ही,
शलभ गुप्ता

8/12/2010

हमें अपने सभी त्योहारों पर नाज़ है.....

त्योहारों का मौसम है विवेक जी..... इसी महीने से अब शुरुआत हो चुकी है.... "हरियाली तीज".....मेहंदी से रंगें हाथ.....फिर "रक्षा -बंधन" ........फिर ईद ....इसी तरह गुजरते रहें ज़िन्दगी के पल..... सबको खुशियाँ देते रहें....हमेशा....
सच, हमारी संस्कृति.... हमारे त्यौहार..... हमारी परम्परायें .... हम सभी को एक अटूट बंधन में बांधे रखती हैं....
यूँ तो जीवन में सभी को कुछ ना कुछ कष्ट तो रहता ही है.... पर इन्हीं त्योहारों में ख़ुशी के कुछ पल मिल ही जाते हैं सबको..... है ना....
हमें गर्व है भारतीय होने का..... हमें अपने सभी त्योहारों पर नाज़ है.....
यूँ तो सबसे मिलते ही रहते हैं... पर त्योहारों पर मिलने का आनंद और ख़ुशी और ही होती है..... और साथ में मिठाईयों का तो जवाब ही नहीं ....
और हां , राष्ट्रीय पर्व भी आने वाला है.... सब मिल कर मनाएं..... हम सब मिल कर मेहनत करें और अपने देश को सबसे आगे ले जाएँ..... आतंकवाद और नक्सलवाद समाप्त हो , हर तरह बस प्रेम और खुशहाली हो....

8/04/2010

"बहुत याद आते हैं किशोर दा ......"



बहुत याद आते हैं किशोर दा ......

हमेशा याद आते रहेंगें....


"ज़िन्दगी कैसी है पहली हाय.... कभी यह हंसाये....

कभी यह रुलाये....एक दिन सपनों का राही ....

चला जाए सपनों से आगे कहाँ......"

7/31/2010

एक जनून ख़ुद में पैदा करना है , किनारे तक पहुँचने का....

भगवान् ने हमें मनुष्य रूप प्रदान किया है। मनुष्य होने के कारण हमें यह स्वतंत्रता मिली है, कि हम अपनी राहें ख़ुद चुनें। जीवन के सही उद्देश्य को समझते हुए ख़ुद का मूल्यांकन करें। जीवन में सकारात्मक विचारों का समावेश और उनका क्रियान्वयन ही सही अर्थों में "हमारी स्वतंत्रता" है। नकारत्मक विचार हमारे पैरों में ज़ंजीर बन कर हमें आगे बढने से रोक लेते हैं। और हमारा जीवन "किंतु-परन्तु" का गुलाम होकर रह जाता है।

जीवन लहरों की तरह है। कुछ लहरें को किनारा मिल जाता है और कुछ लहरें रास्ते में ही दम तोड़ देतीं हैं। जो लोग अपनी मंजिल तक पहुँच जाते हैं, वह "ख़ास" हो जाते हैं। वरना "आम" लोगों की तरह भीड़ में खो जाते हैं।

जब हम जीवन में विषम परिस्थितियों से गुज़र रहे होते हैं। तभी हमें जीवन के वास्तविक अर्थ का पता चलता है।

हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है ? हम अपने द्वारा बनाये गए प्रश्नों में उलझ कर रह जाते हैं। हमें इस प्रश्नों की परिधि से बाहर आकर , ख़ुद का आत्ममंथन करना है।

जीवन के कठिन पलों में भी हमें सुख के पलों को तलाश करना है। जीवन में सही रास्ते का चयन करते हुए , अपने जीवन को सार्थक बनाना है।

लहरों की तरह चलना है निरंतर , एक जनून ख़ुद में पैदा करना है , किनारे तक पहुँचने का .... अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए ख़ुद के लिए सही राहें चुनने का ।

7/28/2010

एक पाती "रवि वासवानी" जी के नाम ....

एक पाती "रवि वासवानी" जी के नाम ....
रवि जी आप, हम सब को हमेशा याद आयेगें ...... जब-जब भारतीय सिनेमा में स्वस्थ मनोरंजन की बात आयेगी ...तब-तब आप हमेशा याद आयेगें.... आपकी सारी फिल्मे देखी थी मैंने....
"जाने भी दो यारों", "चश्मे बुद्दूर " आदि आपकी यादगार फ़िल्में आपके अभिनय की याद दिलाती रहेंगी ....
आप हमसे बहुत दूर चले गये हैं..... बस कुछ यादों के साये रह गये हैं.....






7/27/2010

"कारगिल के शहीदों को शत-शत नमन..."

कल "कारगिल विजय" को 11 वर्ष बीत गए। हम, आप और सभी भारतवासियों ने अपनी भीगी पलकों के साथ सभी कारगिल के शहीदों को शत-शत नमन करते हुए श्रधांजलि अर्पित की ।
धन्य है हमारी भारत भूमि और धन्य हैं वह माताएँ जिन्होंने ऐसे वीरों को जन्म दिया।

लेकिन, शायद आज 11 बीत जाने के बाद भी हमने "कारगिल युद्घ " से कोई सबक नहीं लिया है। वरना "26/11" जैसी घटनाएँ कभी नहीं होती।

हमारे पड़ोसी मित्र, अगर मिलाना है तो दिल से दिल मिला । यूँ बेमन से हाथ मिलाना ठीक नहीं।
वे मित्रताएं , जहाँ दिल नहीं मिलते हैं , बड़ी ऊँची आवाज से टूटती हैं।
"कारगिल" और "26/11" की घटनाएं इसका ज्वलंत उदाहरणहै।
इतनी "सहनशीलता" और "उदारता" आखिर कब तक ?

7/22/2010

अच्छे भाव से किये गये कर्म का परिणाम अच्छा ही होता है।

कर्म कोई बुरा या अच्छा नहीं होता है। कर्म को करने के लिए , कार्य के भाव ही हमारे कर्म को अच्छा या बुरा कर देते हैं। अच्छे भाव से किये गये कर्म का परिणाम अच्छा ही होता है।

हमारे भावों का उदगम स्थल हमारा ह्रदय है, यदि हम ह्रदय शुद्ध नहीं रखेगें , तो हमारी भावना हमारे क़दमों को गलत राह पर ले जायेगी। अच्छे लोगों का साथ हमारे ह्रदय को शुद्ध और पवित्र रखता है... और हम अपने जीवन के कठिनतम समय में भी राह नहीं भटकते हैं....

ईश्वर के यहाँ देर है अंधेर नहीं, बुरे कर्म का बुरा और अच्छे कर्म का अच्छा फल अवश्य ही मिलता है। पर कुछ देर हो जाती है.... यही इस माया का गोरखधंधा है... यदि काम का तुरंत फल मिल जाता तो सारा संसार धर्मात्मा हो गया होता ।

7/15/2010

“घर” में एक “माँ” बहुत ज़रूरी है।"

आपका ह्रदय से कोटि-कोटि आभार । लेकिन इस कविता का विषय मुझे आपके इस सार्गार्वित लेख से ही मिला है। अंत: इस कविता के सर्जन का सारा श्रेय सिर्फ आपको ही है । मैंने कुछ नहीं लिखा है.... आपके लेख ही लिखातें हैं.... और शब्द अपनेआप ही बनते जातें हैं.... सर जी...

इस लेख में लिखी यह पंक्ति " कोई है जो अपने बच्चे के लिए खाना बनाना चाहता है, उसे बड़ा होते देखना चाहता है" दिल को उतर गयी यह पंक्ति.... उस माँ को मेरा सादर प्रणाम है यह दो पंक्तियाँ उन्हीं माँ के लिए लिखी थीं ...

"संवर जाती है ज़िन्दगी बच्चों की,
“घर” में एक “माँ” बहुत ज़रूरी है।"

वहीँ दूसरी तरफ एक दूसरी पंक्ति "Kaun kich kich uthaayega unki…" ने मन को सोचने पर मजबूर कर दिया मुझे.... क्या सच में कोई ऐसा भी सोच सकता है.....

मेरे मन में जो है वही आपके साथ share कर रहा हूँ....

7/09/2010

"संयुक्त परिवार की परंपरा ही समाज में सुधार ला सकती है। "



वर्तमान समय में समाज के इस बदले हुए चहेरे को देखकर , मेरा मन थोडा उदास तो ज़रूर है, पर मैं हताश बिलकुल नहीं हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है आने वाला समय अच्छा और बेहतर होगा।


इस बदलते हुए समाज के हालात पर, हम सभी चिंतित हैं और बदलाव भी चाहते हैं। अकेलापन, भटकाव के रास्ते पर ले जाता है। और इंसान खुद से भी दूर भागने लगता है। जिसका अंत बहुत दुखद होता है। वर्तमान में इस सन्दर्भ में कई उदाहरण हमारे सामने है।


हर व्यक्ति , आज सफल बनाना चाहता है.... बस सब भाग रहें हैं.....एक -दूसरे के पीछे... भीड़ बढती जा रही है... और एक दिन उसी भीड़ का हिस्सा हो जातें हैं... सिर्फ "पैसा" और "शानो-शौकत" ही सफल होने की डिग्री नहीं है।


सभी मिल कर सोचेगें , तभी सार्थक परिणाम सामने आयेगें। वर्तमान समय की मांग यही है कि संयुक्त परिवार की परंपरा ही समाज में सुधार ला सकती है। क्या 24 घंटों में से 24 minute भी हम अपने घर के बच्चों के साथ बिताते हैं...? शायद नहीं.... ... और बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती है । हमें कुछ समय अपने बड़ों के साथ भी बिताना चाहिए... अपने मन की बात भी उनसे share करनी चाहिए... उनके अनुभव ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकते हैं । तभी हम आने वाली नयी पीढ़ी को सार्थक और सही दिशा दे पायेगें....

7/05/2010

""सही angle" से ही सही और सुन्दर तस्वीर बनती है .."

"पहले जितने रिश्ते हैं , पहले उन्हें निभा लें, फिर नये बनायेगें।" जीवन "प्रश्न-उत्तर" का कोई सत्र नहीं हैं, एक अटूट गठबंधन हैं
इन पंक्तियों में आपने इस लेख का ही नहीं , वरन पूरे जीवन का सार लिखा हैयही हमारे जीवन का आधार भी हैजिसने , इन बातों को समझ लिया वह जीवन में कभी अकेला नहीं महसूस करेगा और ना ही कभी अकेला रहेगा
जीवन का मतलब "बिखरना" नहीं है, "बांधना" है सबको, एक साथ एक अटूट बंधन में.....
खुले मन से सबसे मिलना हैअच्छे लोगों के साथ मिल कर चलना हैजीवन जीने के लिए है , मुस्कराते हुए जीना है
(यह दोनों फूलों की तस्वीरें, आपके घर की lobby / window में रखे हुए गमलों की ही हैं , हैं ना सर जी...) दोनों तस्वीरें अलग-अलग दास्ताँ बयां कर रहीं हैं...
"सही angle" से ही सही और सुन्दर तस्वीर बनती है । " जीवन में भी बस इसी बात को आत्मसात करना है
खुद को बदलने की सार्थक पहल करते हुए , समाज को भी बदलना हैअगर हम सभी अपनी सोच को बदल कर सही दिशा की ओर चलें , तो यह समाज अपने आप बदल जायेगाआखिर यह समाज, हम सब से ही तो है