3/27/2011

"कागज़ के फूलों में हम "खुशबू" तलाश रहे हैं।"

सच , आज बहुत कुछ बदल गया है । हमारे अहसास बदल गये है । हमारा "आज" "व्यवसायिक हो गया है । किसी की मुस्कराहट भी अब तो "प्लास्टिक" जैसी लगती है ।
कागज़ के फूलों में हम "खुशबू" तलाश रहे हैं। क्यों आज हम लोग बदल गये हैं ?

जब लोग एक-दूसरे से दिल खोल कर मिलते थे और खुल कर हँसते थे, वो खुशनुमा पल कहीं खो गये से लगते हैं।

हमने गले मिलने की सच्चे और सुखद स्पर्श को भुला दिया है और हम "social networking sites" पर एक-दूसरे से "touch" में रहने की बात करते हैं । सच , यह किसी आश्चर्य से कम नहीं ।

किसी के "दुःख" को कम करने की बात तो दूर , किसी अपने को "खुश" देख कर भी लोग "खुश" नहीं हैं । "कैक्टस" से अहसास हो गये हैं। लेकिन हम "कैक्टस" का example भी क्यों दें ?

प्रभु ने हमें मनुष्य रूप प्रदान किया है , यह हम सबका सौभाग्य है । बस "इंसान" बनना है । एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील बनना है । बदलाव खुद में ही लाना है ।

इन रिश्तों के सन्दर्भ में यह पंक्तियाँ आपके साथ share करना चाहता हूँ ।

"लोग "संग-दिल" हो गये हैं।
रिश्ते "यूज एंड थ्रो" हो गये हैं।
अपनेपन की तलाश में लोग,
और भी अकेले हो गये हैं।"

अभी भी समय है , अपनापन का अहसास खुद में ही ढूँढना है ।
कभी अकेले में अगर हम खुद से बातें करें तो शायद खुद से भी अपनी नज़रें नहीं मिला पायेगें ।
जिंदगियाँ बदल सकती हैं , "संवेदनशीलता" की असली "खुशबू" को अनुभव करना है ।

"मिलाना है तो दिल से दिल मिला,
यूँ बेमन से हाथ मिलाना ठीक नहीं । "

3/19/2011

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.....


खुशियों के इन्द्रधनुष आप सभी के जीवन में हमेशा रंग भरते रहें.....

पहला रंग प्यार का ,
दूजा रंग सदभाव का,
तीजा रंग कर्म का ,
चौथा रंग परोपकार का,
पाँचवा रंग न्याय का,
छठा रंग समरसता का ,
सातंवा रंग ख़ुशी का ।

सात रंग ज़िन्दगी के , सात रंग सपनों के ।
सात रंगों से बनता है खुशियों का इन्द्रधनुष ।

3/10/2011

मुस्कराहटें भी "plastic" जैसी बनावटी हो गयी हैं...

वह जीवन ही क्या ,जिसमें emotions ही ना हों, किसी की लिए feelings ही ना हो... आज के इस दौर में हमारी भावनाएं भी खत्म होती जा रही हैं, और हमारी मुस्कराहटें भी "plastic" जैसी बनावटी हो गयी हैं... इस बड़े शहर की परंपरा ही कुछ ऐसी है शायद... फिर भी जीवन को जी रहे हैं लोग यहाँ... कैक्टस से अहसास हैं यहाँ ... सब जगह ही यह हाल है अब तो...
लेकिन कैक्टस में भी तो फूल खिलते हैं... सबको बदलना होगा... एक दूसरे के लिए कुछ सोचना होगा... काश , हर जगह बस प्रेम, शांति और अपनत्व का वातावरण हो .... एक-दूसरे की दिलों में emotions को जगाना होगा... ना जाने कैसे जीते हैं लोग यहाँ...
यदि आँखों में किसी की,
कोई नमी नहीं हैं।
धरती उस दिल की,
फिर उपजाऊ नहीं है।
संवेदनाओं का एक भी पौधा,
अंकुरित होता नहीं जहाँ,
ऐसा बंज़र जीवन,
जीने के योग्य नहीं है।

3/06/2011

जरा रखो हौसला वह समय भी आयेगा...

जरा रखो हौसला वह समय भी आयेगा,
प्यासे के पास चल कर समुन्दर भी आयेगा।
थक कर ना बैठना ऐ मंजिल के मुसाफिर,
मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आयेगा ।

3/02/2011

ॐ नमो: शिवाय ।

ब्लॉग के सभी सम्मानित मित्रों,
आप सबको "महाशिवरात्रि" की हार्दिक शुभकानाएं...
ॐ नमो: शिवाय ।
शलभ गुप्ता