3/10/2011

मुस्कराहटें भी "plastic" जैसी बनावटी हो गयी हैं...

वह जीवन ही क्या ,जिसमें emotions ही ना हों, किसी की लिए feelings ही ना हो... आज के इस दौर में हमारी भावनाएं भी खत्म होती जा रही हैं, और हमारी मुस्कराहटें भी "plastic" जैसी बनावटी हो गयी हैं... इस बड़े शहर की परंपरा ही कुछ ऐसी है शायद... फिर भी जीवन को जी रहे हैं लोग यहाँ... कैक्टस से अहसास हैं यहाँ ... सब जगह ही यह हाल है अब तो...
लेकिन कैक्टस में भी तो फूल खिलते हैं... सबको बदलना होगा... एक दूसरे के लिए कुछ सोचना होगा... काश , हर जगह बस प्रेम, शांति और अपनत्व का वातावरण हो .... एक-दूसरे की दिलों में emotions को जगाना होगा... ना जाने कैसे जीते हैं लोग यहाँ...
यदि आँखों में किसी की,
कोई नमी नहीं हैं।
धरती उस दिल की,
फिर उपजाऊ नहीं है।
संवेदनाओं का एक भी पौधा,
अंकुरित होता नहीं जहाँ,
ऐसा बंज़र जीवन,
जीने के योग्य नहीं है।

1 comment:

  1. 'कैक्टस से अहसास हैं यहाँ...


    सुन्दर रचना ..

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