2/14/2010

आखिर कब तक ?

इन विस्फोटों से मेरा मन बहुत व्यथित है। बेगुनाह इंसानों की ज़िन्दगी से खिलवाड़ आखिर कब तक ? खून के छींटें हमारे चेहरे पर भी दिखाई दे रहें है।
हर भारत वासी का मन बहुत आहत है । अब यह चोटें नासूर बन गयीं हैं । भारत पर लगातार घाव ......गहरे घाव....इस दर्द का क्या कोई इलाज़ है हम सबके पास ?
नेताओं के भाषण .... फिर एक नयी जांच...... मरने के नाम पर चंद रुपये........ मीडिया द्वारा दिखाई गई लाशें.... आम आदमी के मन में दहशत का मौहाल.....एक दुसरे पर आरोप ........कुछ दिन की ख़ामोशी भरी हुई शांति.....
और फिर कुछ दिनों के बाद फिर वही हादसों के दौर..... आखिर कब तक ?

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