2/16/2010

"बस पहल , खुद से ही करनी है ...."

"अगर महात्मा गाँधी और भगत सिंह एक होते तो हिंदुस्तान का इतिहास कुछ और होता" - "बुद्धं ...." की इस एक लाइन ने आज के परिपेक्ष्य में अपनी सारी बात कह दी है।
चार दिन की ज़िन्दगी में कितने दुश्मन बना लिए हमने ? लोगों के मन में एक -दूसरे के लिए इतनी नफरत क्यों ? प्रेम भाव क्यों नहीं ? भगवान् के दिए इस मूल्यवान जीवन को हम सभी किसी सार्थक काम में क्यों नहीं प्रयोग करते हैं.....
हमारे अंत: करण में जब तक संवेदनशीलता का स्रोत प्रवाहित रहता है तब तक हम समाज के प्रति कोई भी प्रतिकूल कार्य नहीं कर सकते हैं।

आखें गीली होना आदि-आदि तो छोटी बातें हैं मुख्य बात है ह्रदय का द्रवित होना। आतंरिक अहिंसा की अभिव्यक्ति करुणा और संवेदनशीलता में होती है।

जिस व्यक्ति के ह्रदय में संवेदनशीलता का झरना निरंतर प्रवाहित रहता है, वह किसी के प्रति क्रूर नहीं बन सकता है , वह किसी का अहित नहीं सोच सकता । और जीवन में कभी भी किसी के साथ कोई बुरा बर्ताव नहीं कर सकता है।
कमी कहाँ हैं ? हम लोग क्यों रास्ता भटक रहें हैं ? हिंसा का रास्ता क्यों अपना रहें हैं ?

हमें अपने अन्दर और अपने आस-पास ऐसा वातावरण बनाना होगा, जिससे हमारी संवेदनशीलता हमेशा बनी रहे। बस पहल , खुद से ही करनी है। अगर हम किसी पर उंगली उठाते हैं तो हमारे हाथ की बाकी चार उंगलियाँ हमारी ओर हैं। पहले खुद को बदलना है तभी हम समाज को बदल पायेंगें।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, हम सब मिलकर एक नयी दुनिया बसायें , जहाँ सहयोग, प्रेम, संवेदनाओं के फूल सदा मुस्कराएँ। एक- दूसरे के दुःख दर्द को समझें और सबको प्रेम से जीना सीखायें ।

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