1/06/2010

"धूप" का प्रथम आगमन .... 2010 में ..."



आप तो जानते ही हैं , आजकल में अपने गृह नगर में हूँ। पिछले कई दिनों से मेरे शहर ने कोहरे की सफ़ेद चादर ओढ़ रखी थी। तापमान भी 5-6 degree तक आ गया था।

आज मेरे शहर में , नूतन वर्ष 2010 में "धूप" का प्रथम आगमन हुआ। वह गुनगुनी धूप पड़ोसी की छत की दीवार से उतर कर मेरे घर की छत पर आकर बैठ गयी। फिर धीरे-धीरे छत पर लगे लोहे के जाल से होती हुई वह घर के आँगन में छम-छम करती हुई उतर आई। उसकी आहट सुन कर सब आँगन में आ गये। पहले तो विश्वास नहीं हुआ उसे देखकर, आज कई दिनों बाद जो आई थी हम सब की लाडली वह "गुनगुनी धूप".......

सभी ने नये वर्ष में पहली बार आई जाड़ों की गुनगुनी धूप का नई-नवेली दुल्हन की तरह स्वागत किया । घर के सभी सदस्यों ने फिर खूब सारी बातें की उससे । "इतने दिन कहाँ रहीं ?".... मम्मी जी और पापा जी तो दोपहर बाद तलक उससे बातें करते रहें। और धूप के साथ ही छत पर बैठे रहे।

सचमुच, जाड़ों के इन सर्द दिनों में "धूप" , सभी बुजुर्गों के लिए किसी "संजीवनी" से कम नहीं है।

साँझ ढले , उसकी प्रथम विदाई का समय भी आ गया। सबका मन बहुत उदास हुआ। "मौसम ने साथ दिया तो कल भी ज़रूर आऊँगी " --- धूप ने कहा यह चलते-चलते । धूप की बातें सुन कर मम्मी और पापा जी की ख़ुशी दोगुनी हो गयी।

यही जीवन है , इस छोटी-छोटी बातों में ढेर सारी खुशियाँ मिल जातीं हैं । और ज़िन्दगी हर मौसम में भी हमेशा मुस्कराती रहती है।

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