10/15/2010

"निष्काम कर्मयोग की जागृत हो भावनायें ..."

ज़िन्दगी में सबसे महत्पूर्ण बात यह है कि जब हम दूसरों के लिए कोई काम करते हैं....तो उस कार्य के पीछे हमारा कोई व्यक्तिगत स्वार्थ तो नहीं छुपा है ? हम लोग क्यों अपनी सोच को व्यवसायिक करते जा रहे हैं...?
बिना किसी "deal" के क्यों नहीं हम किसी से क्यों नहीं मिलते हैं ?
आज समाज में ऐसे व्यक्तित्व बहुत कम हैं जिन्होंने नि:स्वार्थ भावना के साथ हमें या समाज को कुछ दिया है, और वह भी बिना कुछ पाने कि इच्छा के साथ ।

Few lines of one of my poem....

"जीवन में किसी को , ना कोई कष्ट पहुँचाये ।
पीर परायी जब अपनी बन जाये ।
निष्काम कर्मयोग की जागृत हो भावनायें ।
"प्रेम" और "त्याग" की अंकुरित हो संवेदनायें ।
मेरी नज़र में वही बस "सच्चा कर्म" कहलाये।
आओ, हम सब मिल कर इस धरती को स्वर्ग बनायें । "

हमें खुद को ही बदलना है .....अपनी सोच को बदलना है.... कहीं न कहीं हम खुद भी ज़िम्मेदार हैं इस स्थिति के...
जब हम किसी पर अपनी "एक" ऊँगली उठाते हैं तो बाकि "चार" उँगलियाँ हमारी खुद की तरफ होती है... इसीलिए अभी भी वक्त है हमें खुद को बदलना ही होगा....

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