10/20/2010

"सफलताओं तक ही जीवन की समग्रता सीमित नहीं ..."

समस्त परिक्षाएँ पास करने और उज्जल भविष्य के निर्माण से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है एक इंसान की एक इंसान के प्रति संवेदनशीलता जमीन पर गिरे पत्ते और पहाड़ी पर खड़े ऊँचे दरख्तों के प्रति हमारी संवेदनशीलता
सफलताओं तक ही जीवन की समग्रता सीमित नहीं है। जीवन तो एक विशाल नदी और उसकी अपार जलराशि के सामान है। जिसका ना आदि है और ना अंत
तीव्र गति से बहती हुई इस धारा से हम एक बाल्टी जल निकाल लेतें हैं और वह घिरा हुआ सीमित जल ही हमारा जीवन बन जाता है यही हमारा संस्कार है और हमारा अनंत दुःख भी।
वर्षा ऋतु में बूंदों का बरसना, नदियों का कल-कल करके बहना, पक्षियों का चहकना , बच्चों का मुस्कराना बस यही बातें तो सजीव है इस संसार में बाकी सब निर्जीव है।
सूरज की तेज़ तपन में चलते गरीब के नंगे पाँव , रात को फुटपाथ पर सोते बेबस लोग, सिर्फ पानी पीकर दिन भर काम करते हुए लोग, एक वक्त की रोटी के लिए दोनों वक्त काम करते लोग , जिस्म पर पसीने की बूदें मोती जैसी चमकती हुई , बस यही तो एक सच्चाई है इस संसार में बाकी सब झूठ है।
"फुटपाथ पर नंगे बदन, उसे चैन से सोता देख कर,
मखमली गद्दों पर , नींद ना आई मुझे रात भर "

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