4/22/2010

"सफलता के उजाले ही उजाले मिलेंगें तुम्हें..."

अँधेरे में आखें बंद करने से, अँधेरे का डर ख़त्म नहीं होता है। बल्कि हम और भी गहन अँधेरे में चले जाते हैं।
सच कहा आपने, हमें अपनी आखें खोलनी ही होंगी। कितना ही गहरा अंधकार हो कुछ समय बाद अँधेरे में भी दिखना शुरू हो जाता है...
आस-पास का वातावरण , पहचाना सा लगने लगेगा। कहीं-ना-कहीं से आशा रुपी रौशनी की किरण दिख ही जायेगी। और फिर हर तरफ उजाला बिखरने लगेगा।
जीवन में कठिनाइयों के अंधेरों को देखकर वापस मुड़ना नहीं है और ना ही ठहरना है... बस हौले-हौले कदम बढ़ाते हुए चलते जाना है। बस अपनी आखें खुली रखते हुए चलना है....
पिछले वर्ष लिखी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ इस सन्दर्भ में आपसे share करना चाहता हूँ.... यह पंक्तियाँ भी शायद कुछ यही कहना चाहती हैं......

उदासी के अंधेरों , में नही खोना है तुम्हें

अंधेरों में भी , मुस्कराते हुए चलना है तुम्हें ।

देख लेना फिर जिंदगी में हमेशा ,

सफलता के उजाले ही उजाले मिलेंगें तुम्हें ।

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